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कार्तिक मास - कार्तिक मास पुरुष और स्त्री दोनों को उदीप्त करने वाला है। चारों ओर स्वच्छ जल भरा रहता है जो स्वादिष्ट लगता है। इस मास में स्त्रियाँ अपना शृंगार करती है। इसी मास में देवता भी सोकर उठ जाते है। जिनेन्द्र भगवान की पूजा भी की जाती है। हे स्वामिन् । हमें छोड कर क्यां दु:ख दे रहे हो। यथा -
अहो कातिग पुरिस तीया अदमाद रिमली पान पाणी घणा स्वाद । करौ हो सिंगार ते कामिनी, अहो उट्ठो जी देव जति तणा जोग ।
पूजा तो कीजै जी जिण तणी, स्वामी हमकुं जी दु:ख तुम्ह तणौ जी विजोग ॥१६
मंगसिर मास - मंगसिर मास में अपने पति के साथ में पत्नी को यात्रा करनी चाहिये । चारों प्रकार के दान देने चाहिये । रात्रियाँ बडी होती है और दिन छोटे होते हैं । राजुल नेमिनाथ से कह रही है कि उसका दुख कोई नहीं जानता है। यथा - अहो मागिसिरां इक कीजै जी जात, तीरथ परिसि जै कंत कै साथि । चहुं विधि दान दीजै सदा, अहो राति बडी दिन बोछाजी होई। नेमि सेथी राजल भणे, स्वामि मेरौ हो दुख न जाणै जी कोई ॥१७ ___पोषमास - पोष मास में तीर्थंकरों के कल्याणक होने के कारण नरनारी पूजा करते हैं। मोतियों से चौक पूरा जाता है। स्त्रियाँ अपना श्रृंगार करके भक्ति-भाव से जिनेन्द्र की भक्ति करती है। लेकिन मुझे तो विधाता ने दु:ख ही दिया है। यथा - . अहो पोस मै पोस कल्याणक होई, पूजा जी नारि रचै सहू कोई। पूरै जी चौक मोत्यां तणा, अहो करै जी सिंगार गावै नरनारि। भावना भगति जिनवर तणौ, अहो हमको जी दु:ख दीन्ही करतारि।
माघ मास - माघ मास में खूब पाला पडता है। इस कारण वृक्ष और पौधे बर्फ से जल जाते है तथा नष्ट हो जाते है। हे स्वामिन् । आपने तो मेरी चिन्ता किये बिना ही साधु-दीक्षा धारण कर ली है। हे स्वामिन् । अब मुझ पर भी दया करो। यथा -
542 * छैन. स.विमर्श