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छोल्लि को रालि करि करै पेट की आस ।' जत तप संयम पाठ सह पूजा विधि त्यौहार। जीव दया विण सहु अमल, ज्यौ दुरजन उपगार ॥" कामणी चरित ते गिण्या न जाइ। जैनी की दीक्षा खांडा की धार।
नगर - कवि ने अपने काव्य में द्वारिका तथा कुण्डलपुर का वर्णन किया है। जिससे काव्य में उत्सुकता एवं रोचकता उत्पन्न होती है। क्योंकि उक्त दोनों ही नगर एतिहासिक एवं सांस्कृतिक नगर हैं। जिन्होंने राष्ट्र की संस्कृति के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।१०
द्वारिका - यादवों की समुद्र तट पर स्थित पौराणिक नगरी है। इसी नगरी के शासक समुद्रविजय, वासुदेव एवं हलधर थे। २२वें तीर्थं नेमिनाथ की जन्मभूमि भी यही थी। प्रस्तुत रास में कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार से किया है -
अहो क्षेत्र भरय अर जंबू दीपो। नग्र द्वारा जीमती समद समीप सोभा बाग बाडी घणा। अहो छपन जी कोडि जादौ तणो वासो। लोगति सुखीय लील करै अहा इन्द्रपुरी जिन करै हा विमास॥"
छन्द एवं उनका परिमाण - काव्य को सशक्त और भाषा को संगीतमय बनाने के लिए काव्य में छन्दों का प्रयोग किया जाता है। लेखक को अपने भावों, कल्पनाओं एवं कथा को यथास्थान निबद्ध करने के लिए गद्य की अपेक्षा पद्य का माध्यम सुकर होता है। कवि के काव्य में छन्दों का प्रयोग होने से काव्य में और भी सौन्दर्य आ जाता है। प्रस्तुत नेमीश्वर रास में १४५ छन्दों में कडवक छन्द का प्रयोग किया है। यथा -
भण्यौ जी रासौ सिवदेवी का बालकौ, कडवाहो एक सौ अधिक पैताल। भाव जी भेद जुदा जुदा, छंद नामा इहु शब्द सुभवर्ण। कर जोडै कवियण कहै, भव-भव धर्म जिनेसुर सर्ण ॥२
रचना समय तथा स्थान - काव्य की रचना में उसके रचना स्थान का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। नेमीश्वररास की रचना राजस्थान प्रान्त के
540 * छैन. . विमर्श