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अहो माघ मांस घणा पडै जी तुसार, वनस्पती दाझि सबै हुई छार । चित्त हमारो थिर किम रहै, अहो तुम्ह तो जी जोग दिन्हौ बन आई । मेरी चिन्ता जी परहरी, स्वामि दया हो कीजै अब जादौ जी राई ॥ १९
फाल्गुन मास - फाल्गुन मास में पिछली सर्दी पडती है। बिना नेमि के यह पापी जीव निकलता ही नहीं है, क्योंकि दोनों में इतना अधिक मोह हो गया है। तीनों लोकों का सारभूत अष्टाह्निका पर्व भी इसी मास में आता है, जब देवतागण नंदीश्वर द्वीप जाते है । यथा
फागुण पडै हों पछेता सीउ, नेमि विणा नौकसी पापी या जीव । मोह हमारा तुम्ह तज्यो, अहो व्रत अष्टाह्निका त्रिभुवन सार ।
दीप नंदिश्वर सुर करो, स्वामि हमस्यो जी जैसी करि हो कुमारी ॥२० चैत्रमास जब चैत्र मास के महीनें में बसन्त ऋतु आती है, तो वृद्धा स्त्री भी युवती बन कर गीत गाने लगती है । वन में सभी पक्षी क्रीडा करते रहते है, क्योंकि उन्हें चारों ओर सब फूल खिले हुए दिखते है । कोयल मधुर शब्द सुनाती रहती है | इस प्रकार चैत्र मास पूरा मस्ती का महीना है । ऐसे महीने में राजुल बिना नेमि के कैसे रह सकेगी । यथा
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अहो चैत आवे जब मास बसंत, बूढी हो तरणी जी गावे हो गीत । बन में जो पंख क्रीडा करे, अहो दीसै जी सब फूली वणराइ । करौ हो सबद अति कोकिला, अहो तुम्ह बिना रहै जादौ जी राय । २"
वैशाख मास - वैशाख मास आने पर पुरुष और स्त्री में विविध भाव उत्पन्न होते है । वन में पक्षीगण क्रीडा करते है तथा स्त्रियाँ षट्स व्यंजन तैयार करती हैं, लेकिन हे स्वामी । आप तो घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हो । यह कंजूसी आपने कबसे सीख ली ? यथा
अहो मासि वैशाख आवे जब नाह, पुरिष तीया उपजै बहु भाउ । वन में हो पंखि क्रीडा करै, अहो छह रस भोजन सुंदरि नारि ।
भीख मांगत घरि-घरि फिरै, स्वामी योहु स्याणप तुम्ह कौण विचार।२२
जेठ मास सबसे अधिक गर्मी जेठ में पड़ती है । हे स्वामी । घर में शीतल भोजन है, स्वर्ण के थाल हैं तथा पत्नी भक्तिपूर्वक खिलाने को तैयार है । घर में अपार सम्पत्ति है लेकिन पता नहीं आप दीन वचन कहते हुए घर-घर क्यों फिरते है । आप जैसे व्यक्ति को कौन भला कहेगा ? यथा
ब्रह्मरायमलकृत नेमीश्वर रास का समीक्षात्मक अध्ययन * 543
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