Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

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Page 588
________________ (ये शोधनिबंधमें प्रस्तुत नेमिनाथ कथा दिगंबर परंपरा अनुसार है।) नेमीश्वररास के प्रमुख पात्र समुद्रविजय - नेमिनाथ के पिता थे। इन्होंने गिरनार पर्वत से मोक्ष . प्राप्त किया था। शिवा देवी - नेमिनाथ की माता। उग्रसेन - राजुल के पिता। नेमिश्वर - २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का ही दूसरा नाम है। ये श्रीकृष्ण जी के चचेरे भाई थे। नारायण श्रीकृष्ण - वसुदेव एवं देवकी के पुत्र । राजुल - राजा उग्रसेन की लडकी। नेमिनाथ ने इनके साथ विवाह न करके वैराग्य धारण कर लिया था। राजुल ने भी नेमिनाथ के संघ में दीक्षा धारण करके अन्त में घोर तपस्या करके स्वर्ग प्राप्त किया। भाषा - प्रस्तुत काव्य ग्रन्थ की भाषा ढूंढाड प्रदेश की राजस्थानी है तथा यह राजस्थानी काव्यगत भाषा न होकर बोलचाल की भाषा है। इसमें शब्द एवं क्रियापद स्थिर न होकर परिवर्तित होते रहते है। भाषा अत्यन्त सरल, सौम्य, मधुर एवं स्वाभाविक है तथा सामान्य व्यक्ति भी भाव ग्रहण कर सकता है। इसमें कवि ने शब्दों एवं क्रियापदों को राजस्थानी बोलचाल की भाषामां परिवर्तित करके, उनका काव्यों में प्रयोग किया है । यथा-ल्याया। इत्यादि । प्रस्तुत काव्य में कुछ टेट राजस्थानी शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिससे काव्य में स्वाभाविकता उत्पन्न होती है। यथा-सर्वांसिणी-उक्त प्रान्त में इस शब्द का प्रयोग दूल्हा-दुल्हिन की विवाहित बहन के लिए किया जाता है। संवासिणी का विशेष सम्मान होता है तथा उसे दुल्हिन की विशेष देखभाल करनी पड़ती है। यथा-गावै हो गीत संवासिणी, नाचै जी अप्छरा करिवि सिंगार।" अहो गई जी बिलाई मारग काटि। प्रस्तुत रास में प्रयुक्त सुभाषित एवं लोकोक्तियाँ - प्रस्तुत रास में कवि ने अपने समय में प्रचलित लोकोक्तियों एवं सुभाषितों का अच्छा समावेश प्रस्तुत किया है। इनके प्रयोग से न केवल काव्य में सजीवता उत्पन्न होती है, अपितु तत्कालीन समाज एवं आचार-व्यवहार के भी दर्शन होते हैं। यथा - ब्रह्मरायमलकृत नेमीश्वर रास का समीक्षात्मक अध्ययन * 539

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