Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

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Page 586
________________ प्रारम्भ जैनाचार्यों के द्वारा ही हुआ है। उन्होंने जैनधर्म के प्रचार के लिए रास-नाटकों को आधार बनाया। रास-ग्रन्थों से स्पष्ट है कि कालान्तर में रास की नृत्यगीतपूर्ण शृंगार प्रधान तथा नृत्यगीतहीन धर्मप्रधान, दो धाराएँ ही गयी। नृत्य और संगीत की प्रमुखता के कारण शृंगार प्रधान धारा लोकप्रसिद्ध और प्रचलित हो गई। जैनेतर ग्रन्थों में यही धारा दृष्टिगोचर होती है। सोलहवीं शताब्दी में बल्लभाचार्य तथा हित हरिवंश ने इसी श्रृंगार मूलक रास में धर्म के अंग के साथ नृत्य की पुनः स्थापना की तथा उसका नेता रासरसिकशिरोमणि कृष्ण को बनाया। इस प्रकार काव्य का रूप फिर नाट्य रूप को प्राप्त हो गया। रास की दूसरी नाट्य शैली भी प्राप्त होती है, जिसमें बोधिसत्त्व तथा जीमूतवाहन के आत्मोत्सर्ग का संगीत तथा नृत्य के साथ अभिनय किया गया। महाकवि हर्ष का 'नागानन्द' रास की इसी शैली में लिखा गया है। तत्कालीन जैनाचार्यों की रचनाएँ आचार, रास, फागु, चरित आदि विभिन्न शैलियों में उपलब्ध होती है। आचार-शैली के काव्यों में घटनाओं के स्थान पर उपदेशात्मकता को सर्वोपरि रखा गया। फागु और चरित-काव्य शैली सामान्यतया प्रसिद्ध है । ‘रास' को जैनाचार्यों ने एक प्रभावशाली रचनाशैली का रूप प्रदान किया। जैनतीर्थंकरों के जीवन-चरित जैन आदर्शों के आवरण में ‘रास' नाम से पद्यवद्ध की गयीं। जैन मन्दिरों में श्रावक (गृहस्थ) रात्रि के समय ताल देकर 'रास' का गायन करते थे। अत: जैन साहित्य का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप ‘रास' ग्रन्थ बन गए । वीर गाथाओं में ‘रास' का ही दूसरा नाम रासो है, लेकिन उनकी विषयवस्तु जैन रास ग्रन्थों से भिन्न है। दोनों की रचना शैलियों का अलग-अलग भूमियों पर विकास हुआ है। जैन-रास-काव्यों में धार्मिक दृष्टि प्रमुख होने से वर्णन की वह पद्धति प्रयुक्त नहीं हुई जो वीर गाथा-परक रासो-ग्रन्थों में उपलब्ध होती है। ब्रह्मरायमल्ल का जन्म संवत् १५८० के आस-पास माना जाता है। तथा संवत् १६०१ से १६४० तक की अवधि में ब्रह्मरायमल्ल हिन्दी के प्रतिनिधि कवि रहे है। हिन्दी साहित्य के इतिहास की दृष्टि से इस समय को हिन्दी का भक्तियुग कहा जाता है। महाकवि सूरदास, मीराबाई, आसकरनदास, कल्लानदास, कान्हरदास, कृष्णदास, केशवभट्ट, गिरिधर, गोपीनाथ, चतुरबिहारी, तानसेन, सन्त तुकाराम, दोमादरदास, नागरीदास, नारायणभट्ट, माधवदास, लालदास, विष्णुदास आदि इस समय के भक्तिरस ब्रह्मरायमलकृत नेमीधर रास का समीक्षात्मक अध्ययन * 537

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