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करता है। आदिनाथ का शरीर जन्म से ही दस अतिशय सहित है, उसमें स्वेद-मलादि नहीं होते। रक्त भी दूध - के समान श्वेत है - _ 'दश अतिशय स्वामि रूवडाए, सु. जिणवर सहज सभाव ।
स्वेद मल थका बेगलाए, सु. सोणित खीर समानि ॥१४ प्रकृति-चित्रण -
'आदिनाथ रास' में प्रसंग पाकर प्रकृति-चित्रण भी अनेक स्थानों पर हुआ है जो कहीं आलम्बन रूप में है तो कहीं उद्दीपन रूप में। आलम्बन रूप में प्रकृति का वर्णन द्रष्टव्य है -
'वनस्पति अकालि फलि, फल फूल सुरंग । कोइल करे टहूंकडा, मोर लवे उत्तंग ॥ ममरा रण झण करे, सुआ करे कलि रेव । बहके परिमल अति घणो, सवे बहु देव ॥१५
इसके अतिरिक्त कवि ने प्रकृति से उपमानों को भी ग्रहण किया है यथा -
'बीज चन्द्र जिम वृद्धि करइए। चन्द्र कला जिम वाधीयुए॥१६ कहीं कहीं ‘अलंकारों के रूप में भी प्रकृति-चित्रण हुआ है। 'ज्ञान दिवाकर अगीयो, भवियण कमल विलास ।
भावना परिमल गहगहे, आनंद निरमल वास ॥१७ प्रतिपाद्य-विषयवस्तु :
‘आदिनाथ रास' में मुख्य कथावस्तु के अतिरिक्त अथवा उसके ब्याज से धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, राजनीति आदि उनके महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन भी हुआ है जो अति संक्षेप में इस प्रकार है -
(क) दर्शन - 'आदिनाथ रास' मूलत: साहित्यिक कृति होते हुए भी जैनदर्शन का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी है, अत: उसमें जैनदर्शन की मूल विचारधारा का प्रतिपादन भी हुआ है । कथानायक अदिनाथ को जब केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है तब कवि ने उनके मुख से प्राणिमात्र को जो दार्शनिक उपदेश दिलाया है उसमें जैनदर्शन के सात तत्त्व, नौ पदार्थ, षद्रव्य, चार अनुयोग, सम्यकदर्शन, श्रावकाचार आदि विषयों का वर्णन किया है। जीवादि
ब्रह्म जिनदास कृत 'आदिनाथ रास' * 529