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सप्त तत्त्वों का सच्चा श्रद्धान ही सम्यक्दर्शन है, उन तत्त्वों के नाम इस प्रकार है - _ 'जीव अजीव आश्रव बन्ध जाणो, संवर निर्जरा मोक्ष वखाणो ।
सत्व सात ए मानो ॥ पाप पुन्य सहित सविचार, पदारथ कहीए गुणधार । इम जाणोतम्हे सार ।।१८
'आदिनाथ रास’ में उक्त सभी तत्त्वों का पृथक्-पृथक् वर्णन भी हुआ है। उदाहरणा निर्जरा तत्त्व का वर्णन देखिए -
'तप जप ध्यान बले कर्म बालि, करम तणी निर्जरा सविचारि । करम तणो अपार ॥१९
इसी प्रकार जैनदर्शन के अनेक दार्शनिक विषयों का इस कृतिमें प्रतिपादन यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होता है। विशेषता यही है कि इन वर्णनों से कृति की साहित्यिकता में कोई कमी नहीं आई है ।
ख) संस्कृति - ‘आदिनाथ रास' में प्राचीन भारतीय संस्कृति का मनोरम चित्रण हुआ है । गर्भ, जन्म, विवाह, वर्ण-व्यवस्था, शृंगार, वस्त्राभूषण, कला, नृत्य, संगीत, युद्ध आदि अनेक सामाजिक प्रसंगों का इस कृति में सजीव चित्रण हुआ है। कथानायक आदिजिनेश्वर का जन्मोत्सव और नामकरणसमारोह देवों द्वारा भी मनाया गया है। आदिजिनेश्वर ने अपने पुत्र-पुत्रियों को अनेक विद्याओं और कलाओं का ज्ञान कराया। चौसठ विद्याओं एवं बहत्तर कलाओं की शिक्षा तभी से प्रारम्भ होती है। आदिजिनेश्वर ने प्रजा को भी असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य एवं शिल्प - इन षट्कर्मों की शिक्षा दी तथा कर्मानुसार ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र - इन चार वर्णों की स्थापना की। आदिनाथ के विवाह प्रसंग पर और नीलांजना के नृत्य वाले प्रसंग पर तत्कालीन समाज की नृत्य संगीत में अभिरुचि का परिज्ञान होता है । भरत-बाहुबली का युद्ध तत्कालीन अहिंसक युद्ध-संस्कृति का चित्रण करता है। इसी प्रकार अन्य भी अनेक सांस्कृतिक तत्त्व इस कृति में यत्रतत्र दृष्टिगोचर होते है। कला पक्ष -
'आदिनाथ रास' का न केवल भावपक्ष अपितु कलापक्ष भी बेजोड
530 * छैन. स. विमर्श