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है। उसकी भाषा-शैली अपने भावों को व्यक्त करने में समर्थ सिद्ध होती
(क) भाषा - 'आदिनाथ रास' की भाषा ब्रज-मिश्रित राजस्थानी है जिसे कवि ने ‘देसभाषा' कहा है | कवि का उद्देश्य है कि संस्कृत-कवियों की उत्कृष्ट बात को सरल सुबोध भाषा में इस प्रकार कहा जाये की वह साधारण जनता तक सहजता से पहुंच जाये।
(ख) गुण - 'आदिनाथ रास' की भाषा में अवसर के अनुकूल माधुर्य प्रसाद एवं ओज गुणों का भी प्रयोग हुआ है। उदाहरणार्थ - माधुर्य गुण का एक प्रयोग दृष्टव्य है -
'चन्द्रकला जिम वाघीयुए, खेलइ सरस अपार । मही मंडल परि रिषताए, जैसो भेदनिहार ॥ हलु हलु चाले सुंदरोए, पग मूके जीम फूल । काला वयण सुहावगा, सुललित बोलइ चंग ॥२०
(ग) शब्द-भण्डार - 'आदिनाथ रास' का शब्द-भण्डार बडा विशाल है। तत्सम, तद्भव एवं देशज शब्दों के प्रयोग में तो कवि अत्यन्त कुशल प्रतीत होता है। कृति तद्भव शब्द प्राकृत-अपभ्रंश की यात्रा करके आये लगते है -
'सजल सयल आनंदीया, नीपनो जय-जयकार | जनम हुवो जिणवर तणो, प्रथम तीर्थंकर सार। तिन्नि ज्ञान करि लंकरया, कंचन वरण सरीर । रूपे मनमथ जीतीयौ, प्रथम तीर्थंकर धीर ।।२१
(घ) लोकोक्ति-मुहावरे - ‘आदिनाथ रास' में भावों की सशक्त अभिव्यक्ति के लिए अनेक लोकोक्ति-मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। यथा -
‘सरीर चपल जीम मेघ पटल। जल बुदुडा जीम जाणीय ए॥२२
(ड) सूक्तियां - 'आदिनाथ रास' की भाषा इतनी सुगठित है कि उसमें सूक्तियां का भी सहज निर्माण हो गया है। यथा - ‘सीयल सरीरह आमरण, सोने भारी अंग।
ब्रह्म जिनदास कृत 'आदिनाथ रास' +531