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के अंबको नियुक्त किया, जिसने गिरनार पर चढने की पाज बनवाई थी। गिरनारलेख वि. सं. १२२३ लेख नं. ३०में श्रीमाल ज्ञातीयमहं श्री राणिगसूतमहं श्री आंबाकेन पद्या कारिता -११ ऐसा उल्लेख है।
यहाँ दक्षिण दिशामें लाखाराम का स्थान है। जयसिंहदेवने राखेंगार को मारकर सज्जनमंत्रीको दंडाधिप बनाया। सज्जनमंत्रीने (सं. ११८५में) गिरनार पर नेमि का मंदिर बनवाया। अहिणवु नेमिजाणिंद तणि भवणु कराविउ और इक्कारसयसहिउपंचासीय वच्छरि, नेमिभुयणु उद्धरि साजणि नरसेहरि।
ऐतिहासिक घटनाओंके बीच धर्म और कविता भी अनुस्यूत होते जाते
जिम जिम चडई तडिकडणि गिरनारह, तिमतिम उडई जण भवण संसारट्ट । जिम जिम सेऊजलु अंगि पलोट्टए, तिमतिम कलिमलु सयलु ओहट्टए। जिम जिम वायइ वाउ तहि निज्झर सीयलु, तिमतिम भवदुहदाहो तक्खणि तुट्टइ निच्चलु । ___ मूल कृति की गुज. छाया इस प्रकार है।
जेम जेम चडे तटे कडणे गिरनारनी, तेम तेम उडे जन भवन संसारनो जेम जेम ते उजल (उर्जयंत) आगळ पळाय, तेम तेम कलिमल सकल उखडे, जेम जेम वायु वाय त्यां निर्झर शीळो तेम तेम भवदुखदाण तत्क्षण तूटे...)१२
यहाँ रसात्मकता होने पर भी कला की अपेक्षा धर्म का प्राधान्य है। जैन कवियों का मुख्य लक्ष्य धर्मनिरूपण रहा है। काव्य के मिष से धर्म ही कहा गया है। काव्यतत्त्व गौण होने पर भी उत्तम रसस्थान दिखाई देते हे जैसे - वर्णन, अलंकार, छंद आदिमें इन कृतियोंको संस्कृत प्राकृत की समृद्ध काव्य परंपरा विरासत में मिली है।
निश्चल कोयल कलकल मोर केकारव सुणाय मधुकर मधुर गुंजारव... ...ज्यां उजले छे सुवर्णमय मेदिनी ज्यां दीपे छे दीवा सही सुंदर गुहा-वर गुरु गंभीर गिरि-कंदरा रमणीय उत्प्रेक्षा के साथ कविने रोचक, आस्वाद्य चित्र दिये है।१२
रेवंतगिरिरासु - एक परिचय * 513