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मिलियनवलवलिदलकुसुमझलेहालिया, ललियसुरमहिलवलयचलण तलतालिया गलियथलकमलमयरंदजलकोमला, विउल सिलवट्ट सोहंति तहिं संमला। मणहरवणगहण रसिरहसिय किंनरा, गेउ मुहुरु गायंतो सिरिनेमिजिणेसरा । जत्थ सिरिनेमिजिणु अच्छरु अच्छरा असुरसुरउरगकिंनरयविज्जहरा। मउडमणिकिरणपिंजरिय गिरियसेहरा, हरसि आवंति बहुभतिभरी निब्भरा |
यहाँ मधुर शब्दावली व यथास्थान शब्द - अर्थालंकारकी छटा के साथ ही प्रकृतिदर्शन के उदात्त बिंब मिलते है।
कविवर माघने शिशुपालवध (सर्ग-४)में रैवतक गिरिका भव्य उदात्त वर्णन किया है, जिसमें योगियों की उच्च साधना के साथ ही प्रकृति की लीलायें नये - नये रूप वर्णित है।
दृष्टोपि शैलः स मुहुर्मुरारेरपूर्ववद्विस्मयमाततान । क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीय कायाः । (४/१७)
(बार बार देखे जाने पर भी यह (रैवतकपर्वत) अपूर्व हो, ऐसे मुरारि (श्री कृष्ण) के विस्मय को बढाता रहा, क्षण क्षणमें नवीनता धारण करना ही रमणीयता का स्वरूप है।)
पर्वत की दिव्य प्राकृतिक शोभा के वर्णन के मिष से कवि अपना आदरभाव ही व्यक्त करते है।
कुछ और ऐतिहासिक प्रसंग रेवंतगिरिरासु में दिये है - जैसे
मालवल के भावडशाहने सुवर्ण का (नागरखाना) आमलसार बनवाया, जैसे गगनांगन से सूर्य अवतारित किया ।
कश्मीर देश से आये संघमें आजिउ व रतन श्रावकों ने नेमि के बिंब को अभ्यंगस्नान कराने पर विंब गल गया ।१३
गलिउ लेव सु नेमिबिंब जलधार पडतह ।
अत: संघपतिने पश्चातापपूर्वक २१ उपवास किये, तब अंविकादेवी प्रसन्न हुई।
एकवीसी उपवासि तामु अंबितदेवि आविय ।
514 * छैन । विमर्श