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व उसका भ्राता तेजपाल है। उस समय धोलका में गुर्जरधरा में वीरधवलदेव राजा था। नायलगच्छके विजयसेन सूरि के उपदेशसे दोनों भाइयोने धर्म में दृढभाव धारण किया था, धम्मिधरीउ दिदुभाउ । तेजपाल ने गिरनार की तलहटी में गढ, मढ व प्रपाओंवाला तेजलपुर ग्राम बसाया था। करिउ गढमढ पवपवस मणहरु धरि आरामि । वहाँ आसाराय विहारमें पार्श्वनाथ का मंदिर व अपनी माता के नाम से कुमार सरोवर बनवाया था। उस नगर की पूर्व दिशामें उग्रसेनगढदुर्गमें ऋषभदेव आदिके मंदिर बनवाये । यहाँ यात्रीलोग गिर द्वार पर आते थे, जहां सुवर्णरेखा नदीके तट पर पंचमहरि दामोदरका भव्यमंदिर था।
जोइउ जोइउ भवियण पेमिं गिरिहि दुयारि। दामोदरु हरि पंचमउ, सुवन्नरेहनइपारि॥ गुज. छाया - (जोयो जोयो भव्यजने प्रेमे गिरिने द्वारे, दामोदर, हरि पांचमो सुवर्णरेखा नदी पारे)
गिरिनार, उर्जयंत व सुवर्णसिक्ता (सोनरेखा) के नाम रुद्रदामन के शिलालेख में है। प्राप्त संदर्भो के अनुसार जूनागढ के दामोदरकुंड पर दामोदरराय विष्णु का उल्लेख है ।१० बद्रीनाथ, जगन्नाथ, विठ्ठलनाथ, द्वारिकाधीश-इन चार वैष्णव तीर्थों के चार विष्णु जैसा माहात्म्य दामोदरकुंडके दामोदर का है जिसे पंचम हरि कहा है।
इस वर्णनप्रधान रासकृतिमें - कवि गिरिप्रदेशकी विपुल वनराजिका, वर्णन करते है।
अगुण अंजण अंबिलीय, अंबाडय अंकुल्ल उंबरु अंबरु आमलीय, अगरु असोय अहल्ले करवट करपट करणतर करवंदी करवीर । कुडा कडाह कयंबकड, करब कदलि कंवीर । सीसमि सिंबली सिरसामि सिंधुवारि सिरखंडा.....। पल्लव-फुल्ल-फलुल्लसिय, रेाइ तए वणराइ तहि उज्जिलतलि धम्मियह, उल्लटु अंगि न माइ। उर्जयंत पर्वतकी तलहटीमें धार्मिक लोग उत्साहसे समाते न थे।
गुर्जरदेशमें कुमारपालराजाने सौराष्ट्रके दंडाधिपति के रूपमें श्रीमाली कुल 512 * छैन. यस. विमर्श