________________
विजयसेनसूरि नागेंद्रगच्छ के अमरचंद्रसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि के शिष्य थे, व वस्तुपाल-तेजपाल के गुरु थे। महेंद्रसूरिके शिष्य शांतिसूरि और इसी परंपरा में आनंदसूरि-अमरसूरि-हरिभद्रसूरि और उनके शिष्य विजयसेनसूरि हुए।३ वस्तुपाल-तेजपालने गिरनार, आवू, तारंगा आदि पर देरासर, जिन प्रतिमाओं की स्थापना आदि कार्य किये, इसके प्रेरक विजयसेनसूरि रहे। जैसा कि रेवंतगिरिरास में कहा है -
नायलगच्छ मंडणउ विजयसेनसूरिराउ । उवएसहि बिहु नरपवरे, धम्मि धरिउ दिढुभाउ ।।
इस बात की पुष्टि के १८ लेख मिलते है । जिस में सं. १२८५ - तारंगा पर सूरिने वस्तुपाल द्वारा आदिनाथ बिम्बकी प्रतिष्ठा करवाने का निर्देश करते हुए व स १२९६ आबू पर स्थित, जिस में भिन्न भिन्न तीर्थमि वस्तुपाल द्वारा मूर्तिप्रतिष्टा करवाने का उल्लेख है।
इ.स. १२३२में गिरनार पर नेमिमंदिर बनवाने का उन्होंने तेजपालको उपदेश किया था। तेजपालने आबूगिरि पर नेमि का भव्यमंदिर बनवाया, जिसमें बिम्बप्रतिष्ठा अपने गुरु नागेंन्द्रच्छ के विजयसेनसूरि से. सं. १२८७ में करवाई।६
गिरनार पर के पर्वतलेख सं. १२८८ के है, इसी समय में इस रासकी रचना मान सकते है।
उपरोक्त प्रमाणों से वस्तुपाल-तेजपाल के सुकृत्योमें गुरु विजयसेन का नाम मिलता है। वस्तुपाल कृत नरनारायणानंद काव्य (सर्ग-१६ श्लो. ३१ से ३७) में कहा है - नागेन्द्र गच्छ के आदर्श ऐसे विजयसेनसूरि के अमृततुल्य वचनोंका आस्वाद करनेवाला, धर्मपथ का पथिक में - जिसने कईबार रैवतकादि तीर्थोंकी यात्रा की है।
___ रसायुगकी आरंभकालीन कृतियां भरतेश्वर बाहुबलि घोर (ई ११६९), भरतेश्वरबाहुबलिरास (ई. ११८५) पश्चात् रचितकृति रेवंतगिरिरास एक विशिष्ट वर्ग प्रस्थापित करती है।
जैन परंपरामें रेवंतगिरि या गिरनार का अति माहात्म्य है। नेमिनाथ के तीन कल्याणक-दीक्षा, केवलज्ञान व निर्वाण - यहां हुए है। गिरनार का मूलनाम उर्जयंत है। स्कंदगुप्त के गिरनार के लेखमें (ई-४५६) चक्रपालित ने एकही पर्वत के लिये दोनों नाम दिये है। गिरनार, उर्जयंत व सुवर्णसिक्ता
510 * छैन यस विमर्श