Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 14
________________ दो शब्द मैं पण्डित-शिरोमणि पं. फूलचन्द्रजी सिद्धांत शास्त्री की पावन-स्मृति में स्थापित सिद्धांताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री फाउण्डेशन की प्रबंधकारिणी समिति, रुड़की (उत्तराखण्ड) तथा गणेश वर्णी दिगम्बर जैन, संस्थान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के मंत्री प्रो. डॉ. अशोक कुमार जैन के प्रति अपना सादर आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने पं. फूलचन्द्रजी के शताब्दी समारोह-वर्ष के क्रम में आयोजित स्मारक व्याख्यान-माला के लिये मुझे वाराणसी में २६-३० सितम्बर २००१ को सानुरोध आमंत्रित किया। श्रद्धेय पण्डित फूलचन्द्र जी २०वीं सदी के जैन साहित्य-निर्माताओं एवं धवल, महाधवल तथा जयधवल संबंधी पाण्डुलिपियों के उद्धारक, अनुवादक एवं समीक्षक विद्वानों में प्रथम पंक्ति के अग्र पुरुष थे। मेरा यह सौभाग्य था कि मुझे सन् १६४५ से लेकर उनके जीवनकाल के अन्त तक उनका स्नेह एवं घना आशीर्वाद प्राप्त रहा। अतः उनकी पावन-स्मृति में उक्त व्याख्यान-माला के माध्यम से मुझे उनके प्रति अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, इससे मेरा मन कृतकृत्य और अत्यंत प्रमुदित है। धवला-टीका के अंग्रेजीकरण करने-कराने के लिये दृढ़ प्रतिज्ञ प्रो. डॉ. अशोक कुमार जैन, जो कि स्वयं भौतिकी-शास्त्र विषय के अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति के विचारक विद्वान् होते हुए भी श्रमण जैन-विद्या के रसिक ही नहीं, अपितु इस क्षेत्र में भी अन्य कुछ विशेष योगदान देने का संकल्प किये हुए हैं, के प्रति भी मैं पुनः अपना आभार व्यक्त करता हूँ कि जिन्होंने मुझे पाण्डुलिपियों की खोज एवं सम्पादन-मूल्यांकन संबंधी अपने अनुभवों एवं विचारों को व्यक्त करने के लिये एक सारस्वत-मंच प्रदान किया। ०१ फरवरी, २००४ बी-५/४० सी, सेक्टर ३४ धवलगिरि पो. नोएडा - २०१ ३०७ (यू.पी.) प्रो. डॉ. राजाराम जैन पूर्व-प्रोफेसर एवं अध्यक्ष संस्कृत एवं प्राकृत विभाग (मगध विश्व विद्यालय सेवान्तर्गत), ह.दा.जैन कॉलेज, आरा (बिहार)

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