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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख दक्षिण का चालुक्य-वंश
मध्यकालीन भारतीय इतिहास के निर्माण तथा जैन-साहित्य के विकास में दक्षिण के शिलालेखों तथा पाण्डुलिपियों की प्रशस्तियों के अनुसार चालुक्यों के योगदानों को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। डॉ. भाण्डारकर के अनुसार “वादामी के चालुक्यों के शासनकाल में जैनधर्म को प्रमुखता मिली क्योंकि चालुक्यों के किसी भी अभिलेख या प्रशस्ति में बौद्धधर्म को संरक्षण देने की सूचना नहीं मिलती। इसके विपरीत जैनधर्म के ऐसे अनेक उल्लेख उनमें मिलते हैं, जिनसे चालुक्यों द्वारा जैनधर्म को संरक्षण दिये जाने की सूचनाएँ मिलती हैं ५१ "।।
इस वंश के राजाओं ने दर्जनों जैन-मन्दिरों के निर्माण के लिये भूमिदान एवं धन-दान तो दिये ही, स्वयं भी अनेक विशाल जैन-मन्दिरों के निर्माण भी कराये।
राजा सत्याश्रय की पूर्ण सहायता से जैनकवि रविकीर्ति द्वारा निर्मापित जिनेन्द्र का पाषाण-मन्दिर तथा उसके प्रवेशद्वार पर उत्कीर्णित शिलालेख सर्वाधिक प्रसिद्ध हुआ। यह शिलालेख ऐहोले-शिलालेख ५२ के नाम से जाना जाता है। उसे उक्त कवि रविकीर्ति ने लिखा था तथा अपनी कवित्व-शक्ति की तुलना कालिदास एवं भारवि से की थी। इससे रविकीर्ति की कवित्व-शक्ति का तो पता चलता ही है, साथ ही कालिदास एवं भारवि में से पूर्ववर्ती कौन था, इतिहास के इस विकट विभ्रम को सदा-सदा के लिये मिटाने वाला
भी सिद्ध हुआ। । चालुक्यवंश सम्बन्धी उपलब्ध शिलालेखों के अनुसार मूलवंश देवगण के उदयदेव-पण्डित (अपरनाम निरवद्यपण्डित) विजयदेव-पण्डित, कन्नड़ कवि पम्प (६४१ ई.), कवि-चक्रवर्ती रन्न, विमलचन्द्र-पण्डित देव, द्रविड़ संघ-पुस्तक-गच्छ के त्रैकालमुनि-भट्टारक, विदुषीरत्न शान्तियव्वे, महाकवि वादिराज, दयापाल, पुष्पर्षण सिद्धान्तदेव जैसे आचार्य विद्वान्-लेखक इसी राजवंश में संरक्षण प्राप्त कर जैन साहित्य
और संस्कृति की सेवा एवं उसे विकसित कर सके। जिस प्रकार प्राच्य भारतीय इतिहास के निर्माण में बडली (अजमेर) शिलालेख, प्रियदर्शी सम्राट अशोक एवं कलिंग सम्राट खारवेल के शिलालेखों का योगदान रहा, उसी प्रकार दक्षिण-भारत के मध्यकालीन इतिहास के निर्माण में गंग, राष्ट्रकूट, होयसल, पल्लव, एवं चालुक्य वंश से सम्बन्धित शिलालेखों ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। इन शिलालेखों के बिना दक्षिण के समग्र इतिहास-लेखन का कार्य सम्भव न था।
घट्याला (जोधपुर) का कक्कुक-शिलालेख
६ वी, १० वीं सदी के कक्कुक शिलालेख में, जो कि जोधपुर के पास घट्याला ग्राम में एक स्तम्भ पर टंकित है, उसमें प्रतिहार-वंश की उत्पत्ति एवं उसके राजवंश की
49. The Early History of the Deccan P.75. ५२. जैन शिलालेख संग्रह, (माणिक. दि. जैन ग्रंथमाला, बम्बई) प्रथम भाग, लेखांक
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