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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख विदेशों में भारतीय पाण्डुलिपियाँ
जैसा कि पूर्व में संकेत कर चुका हूँ कि समय-समय पर विदेशी पर्यटकों द्वारा विदेशों में भी पाण्डुलिपियाँ ले जाई गई हैं। यह भी सम्भव है कि प्राचीन काल के हमारे महान् सार्थवाह-श्रावक चारुदत्त, नट्टल साहू, कोटिभट्ट श्रीपाल, भविष्यदत्त, जिनेन्द्रदत्त प्रभृति भी अपने-अपने स्वाध्याय हेतु अपने साथ कुछ पाण्डुलिपियों को लेकर वहाँ के अपने साधर्मी भाईयों के स्वाध्याय हेतु तथा कुछ तीर्थंकर-मूर्तियों को भी उनके दर्शनार्थ वहाँ (विदेशों में) छोड़ आए हों, तो कोई आश्चर्य नहीं। वर्तमान में सम्भवतः वही तीर्थंकर-मूर्तियाँ तथा उनके लिये निर्मित बहुसंख्यक विशाल जैन मन्दिरों के जीर्ण रूप उपलब्ध हो रहे हैं। फिलहाल अभी नये सर्वेक्षणों के अनुसार विदेशों में जो ताड़पत्रीय एवं कर्गलीय पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं, उनकी सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं -
डॉ.वी.राघवन् के बाद जिसकी कि चर्चा मैं पीछे कर आया हूँ, उसके लगभग दो-ढाई दशक बाद पं.हीरालाल जी दुग्गड़, दिल्ली ने अपने कुछ व्यक्तिगत स्रोतों के आधार पर विदेशों में जैन-साहित्य ८६ (प्राच्य-पाण्डुलिपियों) का जो विवरण प्रकाशित किया है, उसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। उनके अनुसार
लन्दन में सहस्रों ग्रन्थागार हैं, जिनमें से अकेले एक ही ग्रन्थागार में लगभग १५०० हस्तलिखित भारतीय-पाण्डुलिपियाँ हैं, जो अधिकांशतया संस्कृत एवं प्राकृत में हैं । वहाँ की इण्डिया आफिस लाईब्रेरी में भी २०००० संस्कृत-प्राकृत की पाण्डुलिपियाँ हैं। अन्य ग्रन्थागारों में भी इसी प्रकार की अनेक पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं। जर्मनी में लगभग ५००० ग्रन्थागार हैं, जिनमें से अकेले बर्लिन में ही अनेक ग्रन्थागार हैं। इनमें से केवल एक ही ग्रन्थागार में १२००० भारतीय पाण्डुलिपियाँ हैं | अन्यत्र की पाण्डुलिपियों का तो हिसाब लगाना ही कठिन है। अमेरिका के वाशिंगटन तथा बोस्टन नगर में ही ५०० से अधिक ग्रन्थागार हैं। इनमें से मात्र एक ही ग्रन्थागार में ४० लाख पाण्डुलिपियाँ हैं। उनमें भी २० सहस्र पाण्डुलिपियाँ केवल संस्कृत एवं प्राकृत की हैं, जो भारत से ले जायी गई हैं। फ्रांस में ११११ विशाल ग्रन्थागार हैं, जिनमें से पेरिस के एक विविलियोथिक ग्रन्थागार में ४० लाख ग्रन्थ हैं। उनमें से १२ हजार संस्कृत एवं प्राकृत की पाण्डुलिपियाँ हैं, जो भारत से ले जाई गयी हैं। रूस में १५०० ग्रन्थागार हैं। उनमें से एक राष्ट्रीय ग्रन्थागार भी है, जिसमें ४० लाख ग्रन्थ हैं। उनमें से २२ हजार संस्कृत एवं प्राकृत की पाण्डुलिपियाँ हैं, जो भारत से ले जाई गई हैं।
८६. दे.मध्य-एशिया और पंजाब में जैनधर्म (दिल्ली, १६७६) पृ. ६८-६६