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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख
इसी प्रकार - तक्षकोको (मैक्सिको), युकातान (प्राचीन मैक्सिको), अस्त्राखान (रूस), बुखारा, पेकिंग (चीन), लोपांग (चीन), तुनहांग (मध्य - एशिया), खोतन, काशगर एवं तिब्बत, मंगोलिया, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका आदि देशों में हमारी अगणित पाण्डुलिपियाँ भरी पड़ी हैं, जिनकी सूचियाँ पूर्ण रूप से प्रकाश में नहीं आ सकी हैं। मास्को (रूस) के प्राच्य शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित जैन-पाण्डुलिपियों की एक सूची, जो अभी ज्ञात हो सकी है, वह निम्न प्रकार है -
१.
आराधना ( शिवकोटि कृत),
२.
३.
उपासकाचार (पूज्यपाद कृत) गृहस्थ धर्म का वर्णन करने वाला ग्रन्थ, पदम-रामपुराण (सोमसेन कृत) सम्यक्त्वकौमुदी-कथा (दो प्रतियाँ), जैन-पूजा-विधि,
४.
भावी-जिन तथा महावीर की स्तुतियाँ,
प्रश्नोत्तर-रत्नमाला (देवेन्द्र की टीका सहित),
सामायिक (संस्कृत एवं प्राकृत की प्रार्थनाओं का संग्रह),
विद्य गोष्ठी - विद्वान ब्राह्मणों को जैनधर्म में दीक्षित करने के लिये उनसे शास्त्रार्थ का निर्देश देने वाली मुनिसुन्दर कृत एक सुन्दर रचना,
आचार-प्रदीप (राजेश्वर-कृत) जैन-नीतिशास्त्र पर आधारित, जिसमें लोक-गाथाओं जैसी अनेक सुन्दर गाथाएँ वर्णित हों । सुभाषितार्णव-अद्वितीय वैज्ञानिक महत्व की दुर्लभ हस्तलिखित प्रति, जिसमें १००० से अधिक श्लोक हैं।
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२०.
चित्रसेन पद्मावतीचरित (नयविजयकृत जैन काव्य) पद्मावती की सुविख्यात कथा का ५३६ श्लोकों में जैन रूपान्तर, सुप्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी-कृत पद्मावत की कथा का मूल स्रोत-ग्रन्थ । इनके अतिरिक्त भी लगभग १३० जैन - पाण्डुलिपियाँ रूस के विविध शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित हैं। कातन्त्र व्याकरण (सर्ववर्मकृत) की दुर्गसिंह कृत टीका की तीन प्रतियाँ वृहत्कथामंजरी, बड्ढकहा ( पैशाची - प्राकृत) का संस्कृत - रुपान्तर
नीतिसार एवं नीतिरत्न ( वररुचि)
वेतालपंचविंशतिका (गुणाढ्यकृत वृहत्कथा के अंशों का क्षेमेन्द्र द्वारा किया गया
गद्य रुपान्तर
प्राकृतलक्षण (चण्डकृत) नेपाली हस्तप्रति
१४० जैन हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ (इनके नामों के उल्लेख नहीं किये गये
हैं)
आचारांग सूत्र - एक हस्तप्रति
कल्पसूत्र - की दो हस्तप्रतियाँ ( इनमें से एक पर 'कल्पलता' नाम की टीका लिखित है )