Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 110
________________ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख ७६ अर्थात् हे भाई, ये तीन वस्तुएँ अन्यन्त महत्वपूर्ण है- लेखनी, पुस्तिका एवं दारा । यदि ये दूसरों के हाथों में चली गई, तो फिर उनके वापिस होने की कोई सम्भावना नहीं । यदि वापिस लौट कर आती भी हैं, तो लष्ट पष्ट (लुंज-पुंज) भृष्ट एवं चुम्बित होकर ही । अतः इन तीनों को तो पराए हाथों में देना ही नहीं चाहिए । यह तो पीछे कहा ही जा चुका है कि प्रतिलिपिकार निरन्तर ही सत्यनिष्ठ रहते थे । अतः वे अपनी प्रतिलिपि के अन्त में अनजाने में होने वाली भूल-चूक की भी सत्यमन क्षमा-याचना कर लेते थे । यथा यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते । । ४ ।। अर्थात् मूल पुस्तक में मैंने जैसा जैसा शुद्ध या अशुद्ध पाठ देखा-पढ़ा, वैसा ही मैंने भी लिख दिया है। यदि अनजाने में अशुद्ध लिखा गया हो, तो मुझे आप लोग कोई दोष मत दीजियेगा और भी अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा यदर्थहीनं लिखितं मयाऽत्र । तत्सर्वमार्यैः परिशोधनीयं कोपं न कुर्यात् खलु लेखकस्य ।। ५ ।। अर्थात् अनजाने में अथवा मति के विभ्रम के कारण मैंने यदि इस पाण्डुलिपि में कुछ अर्थहीन पद-वाक्य लिख दिये हों, तो हे आर्यजन, उनका आप संशोधन कर लीजियेगा । मुझ मतिहीन प्रतिलिपिकार - लेखक पर क्रोधित मत होइयेगा | पाण्डुलिपियों की सुरक्षा कैसे की जाए ? जैसा कि पूर्व में लिखा जा चुका है, काल के दुष्प्रभाव से सहस्रों की संख्या में हमारी पाण्डुलिपियाँ पहले ही नष्ट-भ्रष्ट हो गई या विदेशों में ले जाई गई । अतः उनकी तो अब स्मृति ही शेष रह गई है। गन्धहस्ति- महाभाष्य जैसे अनेक महनीय ग्रन्थ भी सम्भवतः उसी चपेट में आकर हमारी दृष्टि से ओझल होते गए हैं। अब विचार यह करना है कि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, हरयाणा, बुन्देलखण्ड, दिल्ली, आरा, कारंजा एवं कलकत्ता आदि के शास्त्र-भण्डारों तथा भारत के कोने-कोने में व्याप्त प्राचीन जैन मन्दिरों तथा कुछ व्यक्तिगत संग्रहालयों में सुरक्षित पाण्डुलिपियों की सुरक्षा कैसे हो तथा उनमें अन्तर्निहित ज्ञान-निधि से सभी लोग कैसे लाभान्वित हों ? हमारी दृष्टि से उसके लिए कुछ उपाय इस प्रकार किये जा सकते हैं १. अखिल भारतीय स्तर के सर्व-सम्मत संविधान के अन्तर्गत एक ऐसी केन्द्रिय समिति का गठन किया जाय, जिसके निर्देशन में कुछ विशेषज्ञ विद्वान् भारत-भ्रमण कर प्राच्य शास्त्र भण्डारों तथा प्राचीन जैन मन्दिरों एवं अन्यत्र सुरक्षित पाण्डुलिपियों तथा उनकी सुरक्षा-प्रणाली का अध्ययन करें और अपने सुझाव दें कि सभी शास्त्र भण्डारों की क्या-क्या समस्याएँ हैं और उनमें सुरक्षित पाण्डुलिपियों की उपयोगिता अधिक से अधिक कैसे बढ़ाई जा सकती है।

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