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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख
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का प्रसाद है। अपने अध्ययन एवं अनुभूत निष्कर्षों को ही मैंने अपनी इस भाषणमाला में प्रस्तुत किया है। आप सभी ने उन्हें ध्यान पूर्वक सुना, इसके लिए मैं आप सभी का अत्यन्त आभारी हूँ।
- राजाराम जैन
दिनांकः सितम्बर २६-३०, २००१ श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान वाराणसी - २२१ ००५