Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 124
________________ - ५० -१८ - १३ नेपाल - ६३ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख नाथूराम प्रेमी (पं.) - ८२ पद्मावती देवी नादिरज्जमा (सिद्धिचन्द्र के लिये पनियार मठ मुगलसम्राट अकबर द्वारा पन्नग (सर्प) प्रदत्त उपाधि) - ५० पन्नालाल (साहित्याचार्य पं.) नादिरशाह पम्प (कन्नड़ कवि) - नान्दिपद - २२ पम्पादेवी (कन्नड़ महारानी) - नालडियार (तमिल जैन ग्रंथ) - १६, २४ । परमानन्द (पं.) निआर्कस (सिकन्दर का सेनापति) - ४ पल्लवभार _ - १८ पल्लव (राजवंश) निर्ग्रन्थ धर्म पल्लवकीर्ति (विस्मृत कवि) - ४५ निक्षेपलिपि पाकिस्तान नियमसार - ६३ पाटन (गुजरात) - ७, ६० निरवद्य पण्डित - ३५ पाटलिपुत्र - १४, १६ निर्मलदास (श्रावक कवि) - ४८, ४६ पाणिनि (वैयाकरण) - ४२, ६४ निर्वाण काण्ड - ६८ पाणिनीय व्याकरण न्यास - ६२, ६५, ७७ (लुप्त ग्रंथ) नेमिचन्द्र (सिद्धांत चक्रवर्ती) - ३० पाण्ड्य (राजवंश) - १४, १८, १६ नेमिचन्द्र शास्त्री (डॉ.) - ८२ पाण्डव नरेश - १६ नोक्करय्य सेट्टि (कर्नाटक का पाण्ड्व-पुराण (अपभ्रंश, अप्रकाशित एक महासेठ) ग्रंथ) - ४६ पउमचरिउ - ४६, पाण्डुकाभय (सिंघल नरेश) - १८ पंचतंत्र पाण्डुरवर्ण - २, ४ पंचमीकहा (लुप्त अपभ्रंश ग्रन्थ) - ५६ पाण्डुलिपि - ३, ४५ पंचरंगी-झंडा पातसाहि अनंगशाह (ढाका नरेश) - ४७ पंचाख्यान भाषा पात्रकेशरी (जैनाचार्य) - ६३ पंचास्तिकाय - ४७, ४६, ६३ पादलिखित लिपि - १३ पंजिकावृत्ति (कातंत्र-व्याकरण की) – ६५ पामब्बे (कन्नड की आदर्श पज्जुण्णचरिउ (अपभ्रंश-महाकाव्य) - ५६ महिला) - ३०, ३४ पटना पारसकुल पट्टणस्वामी पारसी (लिपि) - १२, - पतंजलि पारिसेट्ठि (कर्नाटक का सेठ) - पद्म कवि (राजस्थानी) पार्वती पद्म (राम) पालि (भाषा) । पद्मनाभ (कन्नड कवि) - २६ पाल्यकीर्ति (शाकटायन, । पदमनाभ कायस्थ (कवि) वैयाकरण) ४८ - ४८ त oc

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