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________________ ६२ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख इसी प्रकार - तक्षकोको (मैक्सिको), युकातान (प्राचीन मैक्सिको), अस्त्राखान (रूस), बुखारा, पेकिंग (चीन), लोपांग (चीन), तुनहांग (मध्य - एशिया), खोतन, काशगर एवं तिब्बत, मंगोलिया, नेपाल, भूटान, बर्मा, श्रीलंका आदि देशों में हमारी अगणित पाण्डुलिपियाँ भरी पड़ी हैं, जिनकी सूचियाँ पूर्ण रूप से प्रकाश में नहीं आ सकी हैं। मास्को (रूस) के प्राच्य शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित जैन-पाण्डुलिपियों की एक सूची, जो अभी ज्ञात हो सकी है, वह निम्न प्रकार है - १. आराधना ( शिवकोटि कृत), २. ३. उपासकाचार (पूज्यपाद कृत) गृहस्थ धर्म का वर्णन करने वाला ग्रन्थ, पदम-रामपुराण (सोमसेन कृत) सम्यक्त्वकौमुदी-कथा (दो प्रतियाँ), जैन-पूजा-विधि, ४. भावी-जिन तथा महावीर की स्तुतियाँ, प्रश्नोत्तर-रत्नमाला (देवेन्द्र की टीका सहित), सामायिक (संस्कृत एवं प्राकृत की प्रार्थनाओं का संग्रह), विद्य गोष्ठी - विद्वान ब्राह्मणों को जैनधर्म में दीक्षित करने के लिये उनसे शास्त्रार्थ का निर्देश देने वाली मुनिसुन्दर कृत एक सुन्दर रचना, आचार-प्रदीप (राजेश्वर-कृत) जैन-नीतिशास्त्र पर आधारित, जिसमें लोक-गाथाओं जैसी अनेक सुन्दर गाथाएँ वर्णित हों । सुभाषितार्णव-अद्वितीय वैज्ञानिक महत्व की दुर्लभ हस्तलिखित प्रति, जिसमें १००० से अधिक श्लोक हैं। जे ५. ६. ७. is ८. ६. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १६. २०. चित्रसेन पद्मावतीचरित (नयविजयकृत जैन काव्य) पद्मावती की सुविख्यात कथा का ५३६ श्लोकों में जैन रूपान्तर, सुप्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी-कृत पद्मावत की कथा का मूल स्रोत-ग्रन्थ । इनके अतिरिक्त भी लगभग १३० जैन - पाण्डुलिपियाँ रूस के विविध शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित हैं। कातन्त्र व्याकरण (सर्ववर्मकृत) की दुर्गसिंह कृत टीका की तीन प्रतियाँ वृहत्कथामंजरी, बड्ढकहा ( पैशाची - प्राकृत) का संस्कृत - रुपान्तर नीतिसार एवं नीतिरत्न ( वररुचि) वेतालपंचविंशतिका (गुणाढ्यकृत वृहत्कथा के अंशों का क्षेमेन्द्र द्वारा किया गया गद्य रुपान्तर प्राकृतलक्षण (चण्डकृत) नेपाली हस्तप्रति १४० जैन हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ (इनके नामों के उल्लेख नहीं किये गये हैं) आचारांग सूत्र - एक हस्तप्रति कल्पसूत्र - की दो हस्तप्रतियाँ ( इनमें से एक पर 'कल्पलता' नाम की टीका लिखित है )
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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