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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख जिन-मन्दिर में बैठकर स्वयं तो अपभ्रंश में पाण्डव पुराण, (३४ सन्धियाँ), हरिवंशपुराण (१३ सन्धियाँ). ३ जिणरत्तिकहा एवं रविवयकहा नाम की रचनाएँ लिखी ही, उन्होंने अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू कृत रिट्ठणेमिचरिउ तथा पउमचरिउ, संस्कृत-भाषा का विबुध श्रीधर कृत भविष्यदत्त-काव्य, एवं अपभ्रंश-भाषा की (विबुध श्रीधर कृत) सुकुमालचरिउ की जीर्ण-शीर्ण, गलित अथवा अर्धनष्ट पाण्डुलिपियों का उद्धार भी किया था। यदि यशःकीर्ति ने उनका उद्धार न किया होता, तो साहित्यिक इतिहास से ये गौरव-ग्रन्थ सदा-सदा के लिए लुप्त ही हो गये होते।
दूसरे भट्टारक हैं, शुभचन्द्र, जो भट्टारक कमलकीर्ति के शिष्य थे। कवि रइधू के अनुसार कमलकीर्ति ने सोनागिरि में एक भट्टारकीय पट्ट की स्थापना की थी और जिस पर उन्होंने भट्टारक शुभचन्द्र को पद-स्थापित किया था ६८ | पट्टाधीश होने के बाद उन्होंने श्रमण-संस्कृति एवं साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया।
(१३) भारतीय इतिहास के ग्रन्थों में उल्लिखित मध्यकाल के अनेक हिन्दु एवं मुस्लिम शासकों के शासन-काल की तिथियाँ कुछ आनुमानिक एवं कुछ भ्रमात्मक रूप में . पाई जाती हैं। मध्यकालीन जैन पाण्डुलिपियों की प्रशस्तियों एवं पुष्पिकाओं के आधार पर उन भ्रमों का भलीभाँति संशोधन किया जा सकता है। उनमें से कुछ शासकों के नाम, उनके शासन-केन्द्र एवं उनकी तिथियों की सूचनाएँ निम्न प्रकार उपलब्ध होती हैं ६६ - राजा का नाम (काल,वि.सं. में) शासन-स्थल विशेष १.मुहम्मद शाह १३६६
योगिनीपुर (दिल्ली) - २.महमूद शाह १४६१
इसका मंत्री
हेमराज जैन था। ३.मुबारिक शाह १४६७ ४.सुल्तान गयासुदीन १५३३ ५.फिरोज खान १५४१-४५ लाडनूं (राजस्थान)
एवं हिसार-फिरोजा
(हरियाणा) ६.बहलोल १५४२ ७.इब्राहीम शाह १५७७-८२ कुरुजांगल,
फिरोजाबाद
एवं सिकन्दराबाद. ८.हुमायूँ १५५४
योगिनीपुर (दिल्ली) ६.आलमशाह १५८४
कालपी (बाबरके राज्यकाल में) १०.बाबर १५८७
योगिनीपुर, कुरुजांगल ११.सलीम
१६०७
६८. विशेष विस्तार के लिये देखिये - रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन
प्रथम सन्धि