Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 78
________________ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख ४७ १२.जहाँगीर १६७२-७४ बीजवाड़ा, अहमदाबाद १३.शाहजहाँ १६८६-६२ इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) १४.मुलकगीर १७३३ दिल्ली १५.आलम १७०५ चम्पावती (आधुनिक चुरू, राजस्थान) १६.नादिरशाह १७६७ इसने भारत में भयानक कत्लेआम किया था। इसकी सूचना एक ग्रन्थ-प्रशस्ति में उपलब्ध होती है। १७.राजा वीरम तोमर १४७६ गोपाचल (ग्वालियर) १८.मानसिंह १५४५-६१ अकबरनगर (राजमहल) बंगाल, १६.राव रामचंद्र १५८१-८३ घट्टयाली नगर एवं चम्पावती. २०.राय वीरम राठौड़ १५६४ चम्पावती २१.रामचन्द्र १६१०-१६१२ तक्षकगढ़ दुर्ग (सलीम के राज्य में) - आधुनिक तोडारायसिंह। २२.भारमल कछवाहा १६२३ गढ़ चम्पावती २३.महाराज सुरजन १६३१ टोंक के समीप सोलंकी २४.राव भगवानदास १६३२ चम्पावती-दुर्ग २५.पातसाहि - १७४५ ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) __अनंगशाह २६.राजा कुशल सिंह १७८५ झिलायनगर कुछ उपलब्ध महत्वपूर्ण जैन-पाण्डुलिपियाँ - हमारी सहस्रों की संख्या में जो पाण्डुलिपियाँ नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी हैं अथवा जो सात समुद्र-पार विदेशों-जर्मनी, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन अथवा हिमालय को लाँघ कर चीन, मंगोलिया और तिब्बत आदि देशों में ले जाई जा चुकी हैं, वे तो अब अपने-अपने भाग्य पर जीवित रहने या मृत हो जाने के लिये विवश हैं। किन्तु अभी लाखों की संख्या में जो पाण्डुलिपियाँ भारत में उपलब्ध हैं, उनमें से अधिकांश का वैज्ञानिक सूचीकरण भी नही हो पाया है, उनके मूल्यांकन एवं प्रकाशन की बात तो अभी योजनों दूर ही है। इस कारण इतिहास के कुछ पक्ष अभी तक प्रच्छन्न, अविकसित अथवा भ्रमित ही पड़े हुए हैं।

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