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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख
(८)- जानूउरु = जानवर, पशु, = जो,
या
= मारता है,
कुसई
खूग पलंगो
सो
न
नहीं,
सु
= तस्य, उसके,
विहस्ति = बेहस्त, स्वर्ग,
बहुत
प्रभूत, अधिक,
जो मनुष्य पशुओं ( एवं प्राणियों) की हत्या करता है, उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकती । प्रत्युत, निश्चित रूप से वह हत्यारा नरक में जाकर भयानक कष्ट भोगता है । यही कारण है कि आपका सेवक कभी भी प्राणि-हत्या नहीं करता ।
(६) - अस्तारां
दोनों नेत्रों से,
तेरीखु
देखा,
वदानु
साले
साते
दीग
सउ
आहू
गुरुवा
मुरुगु
सेरु
गाउ = गा
गाउनर = वृषभ, बैल
शूकर
= चक्रक
= नक्षत्र, सितारा, तारा,
= तिथि, तारीख,
वदन, शरीर,
= साल, वर्ष,
= साखत, घड़ी,
=
=
=
-
= वह,
=
=
-
= प्रभात,
= सर्व,
सभीसरा
ये भव्य स्थान,
हे प्रभु, हमारे दोनों नेत्रों ने यदि आपके भव्य मुख का दर्शन कर लिया तो हम यही मानते हैं कि हमें सुन्दर - सुन्दर नक्षत्र, तारीख, साल, घड़ी सुखद-प्रभात एवं सुन्दर भव आदि सभी कुछ प्राप्त हो गए तथा हमारे सभी मनोरथ भी पूर्ण हो गए। (१०) - माही = मत्स्य उस्तरु = उष्ट्र
= मक्षिका
मगस सितारिका : कावरि-प्राणी-विशेष
कुलग
सगु = श्वान
बत
हंस
=
कृष्णसार
मार्जार
=
मुर्गा
शेर, व्याघ्र
काकः, कौआ
= 3TGT = बकरी
बुज
मूसग चूहा, उंदुर
दुजख
बुचिरुक बिल्लइ
=
दोजखी धंग = नरक के भयानक सुख,
हस्ति
होते हैं, भवति,
दुर्ज = तीतर
चिस्त
मदीदयं
रू
तुरा
कार
कतानु
खयख
गावसु
जरी
हजामु
ते
वासइं
जिम
=
-
बुजुर्ग, मोटा,
निश्चित,
=
=
=
=
=
मारु
वायु
तारुसग
: मयूर
ऊयजकु
= गृहगोधिका
मखल = तीउ, तीड
=
साक्षात् मुख,
= तव तुम्हारा,
= काम, प्रयोजन,
=
= पन्नग
= (बाजु)
=
मत्कुण
= चंचट
= रीछ
=
स्वर्णकार
=
- नापित
= वे
५७
= होते हैं, भवन्ति
= यं जो
श्येन