Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 75
________________ ४४ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख (६) ग्वालियर-दुर्ग में ही ८० फीट ऊँची कायोत्सर्ग-मुद्रा में एक पहाड़ी पर उकेरी हुई आदिनाथ की मूर्ति है, जिसका निर्माता राजा दूंगरसिंह का प्रधान-मन्त्री कमलसिंह संघवी (अथवा सिंघई) था तथा जिसका प्रतिष्ठा-कार्य महाकवि रइधू ने स्वयं किया था। उस पर अंकित मूर्ति-लेख के अध्ययन में सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. राजेन्द्रलाल मित्रा ने अनेक भ्रमों को उत्पन्न किया है। किन्तु महाकवि रइधू कृत प्राचीन पाण्डुलिपि "सम्मत्तगुणणिहाणकव्व' की आद्य-प्रशस्ति के आधार पर उन भ्रमों का भली-भाँति संशोधन किया जा सकता है। (१०) भारतीय इतिहास का मध्यकाल विदेशियों के आक्रमणों का दुखद-काल था। इस समय की विधि-व्यवस्था अत्यन्त शोचनीय थी। उस समय भारतीयता, भारतीय-प्राच्य विद्या के गौरव-ग्रन्थों तथा भारतीय-गौरव की पुरातात्विक वास्तुओं की सुरक्षा तथा प्रतिष्ठा को बचा पाना भी कभी-कभी कठिन लगता था। उस समय का जनजीवन अस्त-व्यस्त होने के कारण संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं भारतीय दर्शन की ऐतिहासिक मूल्य की अगणित प्राचीन महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियाँ नष्ट-भ्रष्ट, लुप्त, विलुप्त एवं अनुपलब्ध हो गयीं। फिर भी अवशिष्ट जैन-पाण्डुलिपियों की प्रशस्तियों में उपलब्ध सन्दर्भो के आधार पर संस्कृत एवं प्राकृत के विस्मृत अनेक साहित्यकारों एवं उनके साहित्य की खोज अथवा जानकारी प्राप्त की जा सकती है। प्रशस्तियों में उपलब्ध उनकी सूची बहुत विस्तृत है। अतः उसे समग्र रूप में प्रस्तुत कर पाना तो यहाँ सम्भव नहीं, किन्तु उदाहरणार्थ कुछ साहित्यकारों एवं उनके ग्रन्थों के सन्दर्भ यहाँ प्रस्तुत किये जा रहें कवि या लेखक का सन्दर्भित रचनाएँ विशेष नाम एवं काल १. आचार्य देवनन्दि महर्षि पाणिनि वर्तमान में वह (पूज्यपाद) के व्याकरण-सूत्रों पर ग्रंथ अनुपलब्ध हैं। (लगभग ५वीं सदी, पं. "शब्दावतार"-न्यास- मुग्धबोध-व्याकरण के युधिष्ठिर मीमांसक के नामक टीका ग्रन्थ- प्रणेता बोपदेव ने इन्हें अनुसार) कृत - (अर्थात् आचार्य देवनन्दि को) पाणिनि सहित भारत के ८ प्राचीन प्रमुख वैयाकरणों में प्रतिष्ठित स्थान दिया है। २. कवि गोविन्द कृत- महाभारत सम्बन्धी किसी वर्तमान में अनुपलब्ध (७वीं-८वीं सदी) प्राकृत-ग्रन्थ की रचना ३. जीवदेव कृत - वीररस-प्रधान किसी वर्तमान में अनुपलब्ध (६वीं-७वीं सदी) प्राकृत-ग्रन्थ की रचना ४. कवि अनुराग कृत- शंकर एवं पार्वती से वर्तमान में अनुपलब्ध (सम्भवतः ५वीं-६वीं सदी) सम्बन्धित कोई श्रृंगार रस-प्रधान संस्कृत-रचना

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