Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 48
________________ २६ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख लेखकों को सभी साधन उपलब्ध कराकर विविध लेखन-कार्यों के लिए प्रेरणाएँ भी प्रदान की और उन्होंने भी प्राकृत, संस्कृत अपभ्रंश और कन्नड़ में शाश्वत कोटि के विविध विषयक शताधिक ग्रन्थों की एक लम्बी श्रृंखला तैयार कर दी, जिनमें शौरसेनी प्राकृत में आचार्य कुन्दकुन्द एवं वट्टकेर (ई.पू. प्रथम सदी के लगभग) स्वामी कार्तिकेय (तीसरी सदी ईस्वी के लगभग), सि.च. आचार्य नेमिचन्द्र (१०वीं सदी ईस्वी) एवं, वसुनन्दि (१२वीं सदी पूर्वार्ध) ___ संस्कृत में आचार्य उमास्वामी (दूसरी सदी), देवनन्दि-पूज्यपाद (५वीं सदी), जटासिंह-नन्दि (७वीं सदी), भट्ट अकलंक (७४५-७४६ ई.), रविषेण (८वीं सदी), गणितज्ञ महावीराचार्य (८वीं सदी), स्वामी वीरसेन (सन् ८१६ ई.), जिनसेन (६वीं सदी), गुणभद्र (६वीं सदी), सोमदेव-सूरि (१०वीं सदी), आचार्य विद्यानन्दि (१०वीं सदी), प्रभाचन्द्राचार्य (१०वीं सदी), श्रीधराचार्य ज्योतिषी (१०वीं सदी), आयुर्वेदज्ञ-आचार्य उग्रादित्य (१०वीं सदी), इतिहासकार वादिराज सूरि (११वीं सदी), मल्लिषेणसूरि (११वीं सदी), इतिहासज्ञ आचार्य-प्रवर-इन्द्रनन्दि (१२वीं सदी) एवं, मुनिचन्द्र देव (१३वीं सदी), - अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू (८वीं सदी), पुष्पदन्त (१०वीं सदी) एवं धवल (११वीं सदी), कन्नड़ के आद्य चम्पूकार आदि-पम्प (६४७ ई.), काव्य-सुधा-धारा को प्रवाहित करने वाले रन्न (६४६ ई.), माइथो-हिस्टोरियन-पोन्न (६५० ई.), चामुण्डराय (६७८ ई.), दिवाकर नन्दि (१०६२ ई.), शान्तिनाथ (१०६८ ई.), कवि नागचन्द्र (अभिनव पम्प) एवं, नागवर्मा द्वितीय (लगभग ११०० ई.), महान कवियित्री कन्ती (लगभग ११०० ई.). राजादित्य (सन् ११०० ई.), नयसेन (सन् १११२ ई.), कीर्ति वर्मा (सन् ११२५ ई.), ब्रह्मशिव (लगभग ११२५ ई.), कर्णपार्य (सन् ११४० ई.), नागचन्द्र कवि (सन् ११४५ ई.), नेमिचन्द्र (सन् ११७० ई.), सोमनाथ (११५० ई.), वृत्तविलास (सन् ११६० ई.), कवि बालचन्द्र (११७० ई.), बोप्पणं (११८० ई.), कोप्पण एवं, अग्गल (११८६ ई.), आचण्ण (११६५ ई.), बन्धुवर्मा (सन् १२००ई.), पार्श्व-पण्डित (१२०५ ई.), जन्न (१२०६ ई.), गुणवर्मा द्वितीय (१२३५ ई.), कमलनव (१२३५ ई.), महाबल (सन् १२५४ ई.), बाहुबलि पण्डित (१३४० ई.). विजयण्ण (१४०० ई.), पदम (१५५० ई.), पुराणेतिहासकार दोड्डय्य (१५५० ई.), पशुचिकित्सक-कीर्तिवर्मा (११२५ ई.) और उनका कन्नड़ ग्रन्थ-गोवेव), चिकित्सक जगद्दल सामन्त (११५० ई.), कन्नड़ चिकित्साग्रन्थ-कल्याणकारक (आचार्य पूज्यपाद के कल्याणकारक का कन्नड़ अनुवाद), सूपशास्त्र के लेखक मंगरस (१५०८ ई.), षट्पदिसाहित्यकार रत्नाकर वर्णी (१५५७ ई.), महान् सांगत्य-साहित्यकार चन्द्रम् (१६०५ ई.), पद्मनाभ (१६८० ई.), प्रभृति ऐसे आचार्य-लेखक प्रमुख हैं, जिन्होंने शाश्वत कोटि के उच्चस्तरीय साहित्य की रचना की, जो आज भी इतिहासकारों, लेखकों, समीक्षकों, भाषा-विज्ञानियों एवं दार्शनिकों के लिये न केवल प्रकाश-स्तम्भ हैं, अपितु, प्राच्य भारतीय-विद्या के गौरव के स्वर्णिम-अग्रशिखर भी माने गये हैं। इसी प्रकार वीर वेनेय, सेनापति चामुण्डराय, महामन्त्री भरत एवं नन्न आदि जैन वीरों तथा कर्नाटक आदि की अनेक आदर्श जागृत महिलाओं में महासति अत्तिमब्बे, जक्कियव्वे,

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