Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation
View full book text
________________
साढतियोगिभदियलिमियासिवमिरिणामापयरगुणमणिरयामा सानादवायनांमजायानिधि मुव॥३वाजवादमाइणजिणामागतिपिश्यपलाया हिरामाणदयकायतिनिखिझायाणरयण सजाउलायामोताहंमग्निवाह विमान मईमाणसाउझासुलाहाणामेनमारतासुतज्ञातीमाायनिगम्भि कालीमाणुरायजिगम्भिकसानद्धपुन विपिगवंदनाणविहिष्णाकिमत्सुः जनराराशवाणामेणवीराजियाणक मलानियसतरारादतकारवाडीति
मासुविशिमायणमणहिरामासिरिमाया होलासाङवेविनिणधाधुधिरपयडू सविानीवातियरवीमाहामुमालादालातियपाइहामुलीलदाहगंदावाजवी जामियकलतवणकुंजाणिवदोमानापियामेमारीलायपियारी गविदि 90
विरुद्धारवाणिजाइविदमितणाहाकापायहाणहिमहशिमिनाउनबुमुहवाणणापत
महिलाहविदेखिएवलिकरेमिहउढदिदेखि गाययोमिवद्धियरवाणणाणविमारियपणमुचियकि TERISTITTEणपरिमयाहिंदिहावमयाविपरीयाहाकालमैदायरिमुवषमयाउंदउधण्याडणलाय
याकुनयामविदमहलकदमावणविधापरऋय योडिनविसमाधणयडविनविनतनाग्राम
म्यानमारनेणतामुकि जहक्षिाकर्मलपडिविविसि माणसादर
Himणियनमवारसिकानावराश्वमइव३सव म्हावाहनिणिरतक मानबमसविणा श्रावामुकरमजमणिवामानंदमणिविरामिनदमासाकार
दापयामाकाटकरावंदेहासाविरकगिलमणकालघासाधनाादूपविणी मारियायझनिधायकहितमाधिपहिमममममिछमिडंक्यपवि
महाकवि रइधू कृत पउमचरिउ (दिल्लीप्रति) की अप्रकाशित जीर्णशीर्ण प्रति के कटे-फटे दो पत्र
(पं. पन्नालालजी अग्रवाल, नई दिल्ली के सौजन्य से फोटो प्रति प्राप्त)

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140