Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 27
________________ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख एक बार जब लगातार बेहद वर्षा हुई और छत चूने लगी, तब वह वर्षा-जल उस लकड़ी में भी प्रवेश कर गया और उसी के प्रवाह में पाण्डुलिपियों के अंश भी बहकर भूमि पर गिरने लगे। पुजारी ने जब भट्टारक जी को इसकी सूचना दी, तब उन्होंने उस लकड़ी को खुलवाकर देखा तो उसमें वही धवल, महाधवल, एवं जयधवल की महत्वपूर्ण टीकाएँ थीं। उसके बाद कैसे-कैसे उनका देवनागरी में प्रतिलिपि-कार्य किया गया, उसकी व्यथा-कथा सभी जानते हैं। कागज की पाण्डुलिपियाँ कुमारपालप्रबन्ध (जिनमण्डन गणि, वि.सं. १४६२) में एक उल्लेख मिलता है ११ कि एक बार चालुक्यनरेश कुमारपाल जब अपने जैन ज्ञान-भण्डार में गया, तो उसने देखा कि उसके लिपिकार कागज के पत्रों पर पाण्डुलिपियाँ तैयार कर रहे हैं। जब उसने पूछा कि कागज पर लेखन-कार्य क्यों किया जा रहा है, तब लिपिकारों ने उसका कारण ताड़पत्रों की कमी बतलाया। इसका तात्पर्य यह हुआ कि १३वीं-१४वीं सदी में ताड़पत्रों की उपलब्धि में कठिनाई होने लगी थी। अतः पाण्डुलिपियाँ कागज पर लिखी जाने लगी थीं। कागज की ऐसी पाण्डुलिपियाँ उत्तर-भारत में प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। कागज-निर्माण-घरेलू उद्योग-धन्धे के रूप में कागज ने पाण्डुलिपि-लेखन के क्षेत्र में अद्भुत क्रान्ति उत्पन्न की क्योंकि उस पर लेखन-क्रिया ताड़पत्र की अपेक्षा अधिक सुकर थी। पाण्डुलिपियों के केन्द्र-स्थलों अथवा उनके आसपास घरेलू-उद्योग के रूप में पाण्डुलिपियों के योग्य कागज का निर्माण भी होने लगा तथा सुविधाजनक लेखनी तथा विविध वानस्पतिक स्याहियाँ (काली, लाल, सुनहरी, रुपहली आदि) बनाई जाने लगी थीं। ग्रन्थी-रहित कई प्रकार की लेखनी का प्रयोग किया जाने लगा था। कुछ पाण्डुलिपियों में कीमती सुनहरी-स्याही का प्रयोग भी किया जाने लगा था। कागज की सचित्र पाण्डुलिपियाँ कागज की अनेक पाण्डुलिपियाँ सचित्र भी मिली हैं, जो मध्यकालीन रंगीन चित्रकला के अद्भुत नमूने हैं। उनकी सुन्दर लिपि, चित्रों में प्रयुक्त विविध वर्ण, नायक-नायिकाओं के नख-शिख चित्रण एवं उनकी भाव-भंगिमाएँ तथा प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बहुत ही सजीव एवं आकर्षक बन पड़े हैं। ऐसी बहुमूल्य सचित्र पाण्डुलिपियों में कल्पसूत्र (अर्धमागधी-जैनागम), महाकवि जिनसेन कृत महापुराण (संस्कृत), महाकवि पुष्पदन्त कृत अपभ्रंश-महापुराण एवं जसहरचरिउ (अपभ्रंश), सुगंधदशमी कथा (अपभ्रंश), महाकवि रइधू कृत जसहरचरिउ (अपभ्रंश) एवं शान्तिनाथ-पुराण (अपभ्रंश) और केशराजमुनिकृत ११. कुमारपाल प्रबन्ध पत्र सं.६६ तथा उपदेश तरंगिणी (१६वीं सदी) पत्र १४२

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