Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 30
________________ ११ जैन- पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख प्रादेशिक, कूटलेखन एवं रहस्यपूर्ण लिपियाँ अर्धमागधी आगम साहित्य की टीकाओं तथा ललित- विस्तरा में भी परवर्त्ती अनेक प्रकार की लिपियों के उल्लेख मिलते हैं। उन सभी का विश्लेषण अभी तक नहीं किया गया है, किन्तु उनके नामों के आधार पर यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि उनमें से कुछ लिपियाँ तो प्रादेशिक थीं, जैसे बंग-लिपि, मगध-लिपि, दरद-लिपि, कलिंग-लिपि, दाविडी - लिपि, भूत-लिपि, ऊर्ध्वान्तरित-लिपि आदि, और कुछ लिपियाँ कूटलेखन (Secret or Code- Words) आदि से सम्बन्धित थीं, जो राजनयिकों द्वारा गोपनीय सन्देशों के आदान-प्रदान के निमित्त सांकेतिक शब्दों से सम्बन्धित थीं, जैसे रहस्यलिपि १५, कूटलिपि १६, दशान्तरपदसन्धिलिखित-लिपि, द्विस्तरपदसन्धिलिखितलिपि, आदि । एक लिपि ऐसी भी है, जिसका गणित से सम्बन्ध रहा होगा। जैसे-गणियलिवि । आक्रान्ताओं के नाम पर प्रचलित लिपियाँ कुछ लिपियाँ उन आक्रान्ताओं के नाम पर भी चल पड़ी, जो यहाँ आकर बस गए थे। जैसे- हूणलिपि, खास्यलिपि, चीनी-लिपि आदि । वस्तुतः अनेक विदेशीजातियों तथा प्रजातियों के लोग आक्रान्ताओं अथवा अन्य अनेक रूपों में भारत में आए और अपनी भाषा एवं संस्कृति के साथ ही यहाँ घुल-मिल भी गए थे, (जैसे शकों की सेना सक्सेना आदि) । अतः उक्त लिपियाँ एवं उनकी भाषाओं के माध्यम से उनके इतिहास एवं संस्कृति का अच्छा अध्ययन किया जा सकता है। अतः भारत के विविध पक्षीय इतिहास को सर्वागीण बनाने की दृष्टि से उक्त लिपियों एवं भाषाओं के विस्तृत एवं तुलनात्मक विश्लेषण की महती आवश्यकता है। उक्त लिपियों से सम्बन्धित पाण्डुलिपियों की जानकारी अभी तक प्रकाश में नहीं आई है । ब्राह्मी तथा खरोष्ठी-लिपि में प्राचीन मूल पाण्डुलिपियाँ अनुपलब्ध जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि उपलब्ध जैन पाण्डुलिपियाँ पूर्वोक्त शिलालेखों को छोड़कर ब्राह्मी एवं खरोष्ठी में लिखी हुई नहीं मिलती। वे परवर्ती विकसित लिपियाँ यथा- प्राचीन देवनागरी तथा कन्नड़, तमिल आदि में मिलती हैं, अभी तक जो प्राचीनतम पाण्डुलिपियाँ ताड़पत्रों पर मिली हैं, वे पाण्डुलिपि - विज्ञान- विशेषज्ञों के अनुसार सम्भवतः ११वीं - १२वीं सदी के पूर्व की नहीं हैं, यह पहिले ही कहा जा चुका है। १५-१६. अभी हाल में कुछ आतंकवादियों की रहस्य - • लिपि या कूट लिपि पकड़ी गई हैं। समाचार पत्रों (दैनिक जागरण २८/६/२००१) ने उसका विवरण इस प्रकार दिया है (१) आटा और तेल कल पहुँच जायेगा अर्थात् आर. डी. एक्स. और नाइट्रेवेंजिन भी कल तक पहुँच जायेगा । (२) झाडू और दाने शीघ्र ही भेजे जा रहे हैं अर्थात् ए. के. ४७ राइफिलें एवं गोलियाँ शीघ्र ही भेज रहें हैं । इसी प्रकार अन्य कूटलेखों में टार्च अर्थात् रॉकेट लांचर, किताब अर्थात् विस्फोटक का आइमर, डिक्शनरी अर्थात् रिमोट कन्ट्रोल और चप्पल अर्थात् पिस्तौल (भी शीघ्र भेज रहे हैं)

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