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जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख पुराविदों के अनुसार भारतीय संविधान तीर्थंकर महावीर एवं सम्राट-खारवेल के प्रति विशेष रूप से उपकृत है क्योंकि देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी (प्रथम राष्ट्रपति भारतीय गणतंत्र) की प्रेरणा से उसकी मूल प्रति के मुख पृष्ठ पर सर्वोदय के महान प्रचारक तथा मानव-व्यक्तित्व के विकास के दृढ़ संकल्पी तीर्थंकर महावीर का रेखा-चित्र तथा उसके नीचे जैनधर्म की प्रशंसा का अंकन किया गया है और कलिंगाधिपति जैन सम्राट खारवेल (ई. पू . दूसरी सदी) के शिलालेख की १०वीं पंक्ति में उल्लिखित "भरधवस" के आधार पर स्वतंत्र भारत का संवैधानिक नामकरण भी "भारतवर्ष" किया गया।
पुराविदों ने उक्त खारवेल-शिलालेख को अभी तक के प्राप्त विश्व के प्राचीनतम शिलालेखों का मुकुट-मणि माना है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारतीय-संविधान के लेखन के पूर्व घटित एक घटना बड़ी ही रोचक एवं चर्चित है, जो निम्न प्रकार है
दिल्ली में भारतीय संविधान-निर्मात्री परिषद् की बैठक चल रही थी। देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी, प्रधान मंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु, सरदार बल्लभभाई पटेल, उड़ीसा के त्यागमूर्ति मुख्यमंत्री विश्वनाथदास जी, मौलाना अबुलकलाम आजाद जैसे अनेक महान् राष्ट्रभक्त एवं स्वतंत्रता-सेनानी तथा डॉ. भीमराव अम्बेडकर जैसे विधिवेत्ता आदि उसमें उपस्थित थे।
संविधान-लेखन के प्रारम्भ में ही प्रश्न उठा कि स्वतंत्र-भारत का संवैधानिक नाम क्या हो ? उपस्थित सदस्यों में से किसी ने आर्यावर्त और किसी ने हिन्दुस्तान जैसे नाम सुझाए और उन पर दीर्घकालीन चर्चाएँ-परिचर्चाएँ भी हुई। किसी ने मार्कण्डेय-पुराण में सन्दर्भित भारत का उद्धरण देते हुए इस देश का संवैधानिक नाम "भारत" घोषित करने का आग्रह किया। एतद्विषयक चर्चाएँ भी लम्बे समय तक चलीं, किन्तु पण्डित जवाहरलाल नेहरु, जो कि प्राचीन विश्व इतिहास एवं संस्कृति के गम्भीर अध्येता एवं चिन्तक मनीषी विद्वान् भी थे, उनका प्रस्ताव था कि हमारे स्वतंत्र-भारत के संवैधानिक नामकरण के लिए प्राचीन साहित्यिक-साक्ष्य की अपेक्षा यदि कोई प्राचीन शिलालेखीय-साक्ष्य मिल सके, तो वह अधिक प्रामाणिक एवं न्याय-संगत होगा। यह संयोग-सौभाग्य ही था कि उक्त परिषद् में एक इतिहासकार सदस्य भी उपस्थित थे। उन्होंने भुवनेश्वर (उड़िसा) जिले की उदयगिरि-खण्डगिरि की पहाड़ी पर ई.पू. दूसरी सदी में उत्कीर्णित खारवेलशिलालेख २२ का अध्ययन किया था, जिसकी भाषा "ओड्र-मागधी प्राकृत एवं लिपि "ब्राह्मी" है।
वह ऐतिहासिक शिलालेख एक लम्बी ग्रेनाइट १५फुट x फुट की पाषाण-शिला पर १७ पंक्तियों में टंकित है। उन्होंने उक्त शिलालेख की १०वीं पंक्ति का उद्धरण देते हुए अनुरोध किया कि ई.पू. दूसरी सदी के उक्त शिलालेख में इस देश को "भरधवस"
२२. यह शिलालेख कई नामों से प्रसिद्ध है। यथा-उदयगिरि-खण्डगिरि शिलालेख
हाथीगुम्फा-शिलालेख, खारवेल-शिलालेख आदि ।