Book Title: Jain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Fulchandra Shastri Foundation

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Page 23
________________ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख ईसा-पूर्व दूसरी सदी के हाथीगुम्फा-शिलालेख में चर्चा आती है कि कलिंग का चक्रवर्ती जैन सम्राट खारवेल १५ वर्ष की आयु में युवराज-पद प्राप्त करने के पूर्व, लेख, रूप, गणना, व्यवहार एवं विधि में विशारद (पण्डित) हो गया था । इस उल्लेख से यह विदित होता है कि लेखन की परम्परा खारवेल के समय तक श्रमण-संस्कृति में पर्याप्त विकसित एवं सार्वजनीन होने लगी थी। ई.पू. की सदियों में भोजपत्र,ताड़पत्र एवं कागज के प्रयोग पाण्डुलिपि तैयार करने सम्बन्धी परवर्ती उपकरणों में भोजपत्र, ताड़पत्र एवं कागज का महत्वपूर्ण स्थान है। ____ भारत में कागज के निर्माण की सर्वप्रथम सूचना यूनानी-स्रोतों से मिलती है। सम्राट सिकन्दर के सेनापति निआर्कस (ई.पू. ३२० वर्ष) ने लिखा है कि "भारतीय प्रजा रुई तथा चिथड़ों को कूटपीस कर कागज बनाती है। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (प्रथम) के शासनकाल में पाटलिपुत्र में ई.पू. चतुर्थ सदी में एथेंस (यूनान) के राजदूत के रूप में आए मेगास्थनीज (ईसा-पूर्व ३०५) ने भी उसका समर्थन किया है। इससे विदित होता है कि ईसा-पूर्व की चौथी-तीसरी सदी में भारत में कागज का आविष्कार भी हो गया था और उस समय कागज तथा भोजपत्र दोनों का ही प्रयोग होने लगा था। किन्तु उसका उपयोग किसने किस प्रकार किया, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होती। भारत में आज ई.-पू. की कागज अथवा भोजपत्र की कोई पाण्डुलिपि उपलब्ध भी नहीं है। इसका कारण सम्भवतः यही रहा होगा कि वे दोनों ही सड़ने-गलने वाले पदार्थ थे, अतः बहुत सम्भव है, उन पर लिखित पाण्डुलिपियाँ प्राकृतिक विपदाओं या अन्य कारणों से नष्ट हो चुकी हों ? वस्तुतः यह गम्भीर खोज का विषय है। भोजपत्र - ___ भारतीय प्राच्य संस्कृति में भोजपत्र को लेखनोपकरण की दृष्टि से शुद्ध एवं उपयोगी माना जाता था। महाकवि कालिदास के समय में लेखन-सामग्री का सर्वाधिक व सुविधाजनक साधन भोजपत्र ही था। यही कारण है कि उनकी एक महिला -पात्र-उर्वशी ने अपने प्रेमी पुरुरवा को भोजपत्र पर प्रेमपाती लिखकर भेजी थी। वह चितकबरा था, इसीलिये विदूषक ने उसे साँप की केंचुली समझ लिया था। वस्तुतः भोजवृक्ष की बाहिरी छाल में कागज जैसी पतली अनेक परतें होती हैं, जिनपर हल्के रक्त -वर्ण की चित्तियाँ रहती हैं। इसी कारण वे साँप की केंचुली के समान दिखाई देती हैं। वह बहुत ही सुकुमार होता है, इसीलिये कुछ वनस्पति-शास्त्रियों ने भोजवृक्ष को बहुत ही गर्मीला और कान्ता-सदृश कहा है। .. ततो लेख-रूप-गणना-व्यवहार-विधि-विसारदेन सबविजावदातेन नववसानि योवराज - 'सितं-(खारवेल-शिलालेख पंक्ति-२)

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