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१३८ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
पर मानकर इस (मनोवैज्ञानिक) प्रणाली का समर्थन किया है। उनकी मान्यता है कि नैतिक नियमों की विवेचना के लिए मनोवैज्ञानिक विश्लेषण होना चाहिए।
मानव-मन सुख पाना चाहता है, यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है, इसलिए उसे सुख की खोज करनी चाहिए, यह नैतिक आदर्श है । अतः नैतिक नियम मनोविज्ञान पर आधारित हैं।
मनोवैज्ञानिक प्रणाली को क्लार्क, शेफ्टसबरी जैसे सहजज्ञानवादियों (Intuitionists) ने भी अपनाया है। वे कहते हैं-मनुष्य में कर्तव्याकर्तव्य का निश्चय करने की एक सहज स्वाभाविक अन्तश्चेतना है।
कान्ट ने भी मनोवैज्ञानिक प्रणाली का अनुगमन करके कर्तव्य के निरपेक्ष आदेश (Categorical Imperative) का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
भौतिक और जैविक प्रणाली के समर्थकों की सबसे बड़ी भूल यह है कि वे पशू जगत को आधार मानकर मानव के नैतिक नियमों की व्याख्या करना चाहते हैं । वे भूल जाते हैं कि पशु में नैतिक चेतना का विकास ही कहाँ हुआ है ? मानव में विकसित नैतिक चेतना होती है, अतः वही सभी नैतिक नियमों का आधार और केन्द्रबिन्दु है।
___ यह भूल ऐतिहासिक प्रणाली में है। मूल्य तथ्यों से उत्पन्न नहीं होते । उद्गम इतिहास से उनकी प्रामाणिकता (validity) सिद्ध नहीं होती। इस विषय में श्री बालफोर के शब्द द्रष्टव्य हैं
___'मुझे सच बोलना चाहिए', इसका यह अर्थ नहीं कि मैंने सच बोला है, बोलता हूँ अथवा बोलूंगा । वह उद्देश्य और विधेय में कोई कार्य-कारण सम्बन्ध, सहअस्तित्व अथवा किसी क्रम के सम्बन्ध का द्योतक नहीं है।
मनोवैज्ञानिक प्रणाली के समर्थक मनोविज्ञान और नीतिशास्त्र के मौलिक अन्तर को भूल जाते हैं। नीतिशास्त्र आदर्शों का अध्ययन करता
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I ought to speak truth, for instance, does riot imply that I have spoken, do speak, or shall speak the truth, it utters no bond of causation between subject and predicate nor any coexistence nor any sequence. .
-Balfour, A Defence of Public Doubt, Appendix,
On the Idea of a Philosophy of Ethics, p. 336
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