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२४२ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
सम्बन्ध दो व्यक्तियों, दो परिवारों का अटूट सम्बन्ध है; जो जीवन भर तो रहता ही है, परम्परागत रूप से कई पीढ़ियों तक चलता है। इसलिए इसमें थोड़ी सी भी असावधानी संघर्ष, क्लेश, विग्रह, पारिवारिक विघटन, समाज टूटन का कारण बन जाती है।
- आचार्य हेमचन्द्र ने समान कुल-शील वाले किन्तु भिन्न गोत्रीय परिवार के साथ विवाह सम्बन्ध निश्चित करने का विधान किया है।
__कुल पितृपक्ष से निर्धारित होता है और शील का अभिप्राय है सदाचार, घर-परिवार का आचार । गोत्र एक पूर्वज की वंश परम्परा' को कहा जाता है । सात प्रकार के गोत्र स्थानांग सूत्र में भी बताये हैं। ___ समान कुल-शील से अभिप्राय है- कन्या और वर दोनों पक्षों के परिवार का आचरण लगभग समान हो। दोनों परिवारों में ही अहिंसा, सत्य, उदारता, दान, दया आदि का परम्परागत आचार-व्यवहार हो।
भिन्न गोत्र का समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और शरीर सम्बन्धी महत्व है । एक गोत्र से उत्पन्न हुई संतानें कम प्रतिभाशाली होती हैं। सभी समाजशास्त्री भिन्न गोत्रज परिवारों में विवाह सम्बन्ध की एकमत से सिफारिश करते हुए कहते हैं-अन्य गोत्रजा कन्या की संतान अधिक प्रतिभाशाली होती है, उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास भी कुछ विशिष्ट होता है ।
सद्गृहस्थ इन्हीं सब बातों पर विचार करके संबंध निश्चित करता है । धन आदि को प्रमुखता देकर यदि वह विपरीत कुल-शील वाले परिवार से संबंध स्थापित कर लेता है तो उसका पारिवारिक जीवन क्लेशमय होने की संभावना बढ़ जायेगी ।
विवाह के प्रसंग में यह विचार भी आवश्यक है कि पुत्र-पुत्रियों का विवाह कब करना चाहिए, वर और कन्या की कौन-कौनसी समानताओं को दृष्टि में रखना आवश्यक है।
इस विषय में भगवती सूत्र में बताया गया है कि कन्या और
१ कुलशीलसमैः सार्धं कृतोद्धाहोऽन्यगो जैः । -योगशास्त्र १/४७ २ युवाचार्य श्री मधुकर मुनि : साधना के सूत्र, तृतीय संस्करण, पृष्ठ ८२। ३ युवाचार्य श्री मधुकर मुनि : साधना के सूत्र, तृतीय संस्करण, पृ० ८२। ४ सरिसयाणं सरिसव्वगं सरिसत्ताणं सरिसलावण्णरूवजोवणगुणोववेयाणं सरिसएहितो।
-भगवती ११/११
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