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४१० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नहीं ? यदि पिस्तौल चलाता है तो जीवन रक्षा के कर्तव्य से च्युत होता है और नहीं चलाता है तो सम्पत्ति सुरक्षा के कर्तव्य से।
इसी प्रकार एक डाक्टर मृत्यु के निकट रोगी को बता देता है कि 'तुम जीवित नहीं बचोगे' तो वह उसको घोर कष्ट पहुंचाता है और उसकी मृत्यु को तीव्रता प्रदान करता है, इस प्रकार जीवन के सम्मान के कर्तव्य से च्युत होता है और यदि उसे झूठा धैर्य देता है कि 'तुम स्वस्थ हो जाओगे' तो वह सत्य से च्युत होता है।
___ व्यावहारिक जीवन में ऐसी अनेक परिस्थितियां सामने आती हैं; जबकि नैतिक व्यक्ति को अपना कर्तव्य निर्धारण करना कठिन हो जाता है। __इन समस्याओं के समाधान के लिए पश्चिमी नीतिकारों ने कर्तव्याकर्तव्य विचार (Casuistry) नाम का एक शास्त्र ही रच दिया है जिसमें विभिन्न व्यावहारिक समस्याओं के अवसर पर कर्तव्य निर्धारण करने की प्रणाली बताई गई है।
किन्तु इस शास्त्र का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह नैतिकता के व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल देता है। दूसरी बात यह है कि व्यक्ति अवसर विशेष पर किये गये अपने क्रिया-कलापों के लिए कोई न कोई तर्क (बहाना) खोज निकालेगा और उसकी नतिक प्रतिबद्धता में शिथिलता आ जायेगी।
___ इन्हीं सब बातों पर विचार करके ग्रीन ने कहा है-कर्तव्यों में संघर्ष जैसी कोई बात होती ही नहीं। प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति का एक ही कर्तव्य होता है, यद्यपि यह संभव है कि परिस्थितियां इतनी जटिल हों कि वास्तविक कर्तव्य का निश्चय करना कठिन हो जाय ।।
__ग्रीन के इस कथन से ध्वनित होता है कि कर्तव्यों में विरोध हो ही नहीं सकता। जो कुछ भी विरोध दिखाई देता है, उसका कारण व्यक्ति की
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There is no such thing really as a conflict of duties. A man's duty under any particular set of circumstances is always one, though the conditions of the case may be so complicated and obscure as to make it difficult to decide what the duty really is.
-Green T. H. : Prolegomena to Ethics, p. 355
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