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अधिकार-कर्तव्य और दण्ड एवं अपराध | ४१७ बदला लेने का सिद्धान्त (Retributive Theory)- इस प्रकार के दण्ड में प्रतिशोध की भावना प्रमुख होती है। Old Testament में इस सिद्धान्त को आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत (an eye for an eye and a teeth for a teeth) कहकर बतलाया गया है।
अरस्तू इस प्रकार के दण्ड को ऋणात्मक पुरस्कार (Negative reward) कहता है । हीगेल, काण्ट, ब्रडले आदि इसी सिद्धान्त के समर्थक हैं।
जेम्स स्टीफेन कहता है- “दण्ड और प्रतिकार का वही सिद्धान्त है जो प्रेम और विवाह का है ।"2
ये सभी विचारक दण्ड को प्रतिकार मानते हैं।।
बोसांके ने इस सिद्धान्त की दो विशेषताएँ बताई हैं, प्रथम-दण्ड अपराध के बराबर होना चाहिए और दूसरी व्यक्तिगत बदले (revenge) को दण्ड के साथ मिला दिया जाता है ।
इस सिद्धान्त के दो रूप हैं-कठोर और मद । कठोर सिद्धान्त के समर्थक कठोर दण्ड देना उचित समझते हैं और मदु सिद्धान्त के समर्थक मद् अथवा हल्का दण्ड देने में विश्वास करते हैं।
यह सिद्धान्त दोषपूर्ण है, क्योंकि बदले की भावना व्यक्ति में सुधार की भावना की कोई गुजाइश नहीं छोड़ती अपितु हिंसा तथा अराजकता का वातावरण निर्मित करती है।
जैन नीति के अनुसार तो यह हिंसा की परम्परा है, जो जन्म-जन्मान्तर तक चलती है, अतः सर्वथा त्याज्य है । हिंसा के प्रत्यय में यह संकल्पी हिंसा है, जान-बूझकर, योजनाबद्ध तरीके से किसी को कष्ट देना, अंग-भंग करना अथवा प्राण हनन करना है जो नैतिक सद्गृहस्थ कभी नहीं करता।
(२) निवर्तनवादी सिद्धान्त (Preventive Theory)-- इस सिद्धांत के अनुसार दण्ड इसलिए दिया जाता है कि अपराधी भविष्य में अपराध न करे तथा अन्य व्यक्तियों को भी अपराध न करने की प्रेरणा मिले। इसका सीधा सा अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को रुपया चुराने के लिए दण्ड नहीं दिया जाता अपितु इसलिए दिया जाता है कि भविष्य में चोरियां न हों।
१ डा. रामनाथ शर्मा : नीतिशास्त्र के सिद्धान्त, पृ. ३१७
Criminal procedure is to resentment what marriage is to affection.
-Sir James Stephen
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