Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 540
________________ ४६८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन मांस भक्षण बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल । जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल ।। - कबीर ग्रन्थ० पृ० ४२ मित्र अवगुन गनहि निवारिबै, गुनहि गहायै जौन । हितकारी उपकाररत मीत सरिस है कौन ।' -सदाचार सोपान ८१ रहिमन भेषज के किए काल जीति जो जात। बड़े बड़े समरथ भए तौ न कोइ मरि जात ।। -रहीम दोहा० २२० झूठे सुख को सुख कहै मानत है मन मोद । जगत चबीणा काल का, कछु मुख में कछु गोद । - कबीर ग्रन्थ० पृ० ७१ मोह मोह अँधेरो कारने दीखे सत्य असत्य । ईश दीप्ति से दूर हो, सत्य होइ तब सत्य ।। -नीति छन्द याचना रहिमन याचकता गहै बड़े छोट है जात । नारायण को हू भयो बावन आँगुर गात । --रहीम दोहा० २२४ राग द्वोष कह गिरिधर कविराय, सुखी सो कैसे होवै । तृष्णा राग रु द्वष इर्ष्या मत्सर बोवै ।। ___-गिरधर कुण्डलिया १६८ ना काह सौं राग है, न काह सौं द्वष । उसे और क्या चाहिए, वह तो है सर्वेश ।। -नीति छन्द० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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