Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 555
________________ उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि : एक परिचय जैन तत्त्वविधा के जाने-माने लेखक, सतत अध्ययनशील चिन्तन-मनन-लेखन में लीन श्री देवेन्द्र मुनि जी के नाम से प्रायः समग्र जैन समाज सुपरिचित है । वि० सं० 1988 दिनांक 7-11-1931 उदयपुर में आपका जन्म हुआ । नौ वर्ष की लघुवय में पूर्व संस्कारों से प्रेरित व वैराग्यो भूत होकर गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के चरणों में प्रवजित हुए। तीक्ष्ण प्रज्ञा व व्युत्पन्न मेधा बल से अल्प समय में ही संस्कृत, प्राकृत, दर्शन, न्याय, इतिहास व आगम आदि का तलस्पर्शी अध्ययन किया । आपश्री की प्रज्ञा विवेचना-प्रधान और दृष्टि अनुसन्धान मूलक, समन्वय प्रेरित है । आप किसी भी विषय पर लिखते हैं तो उसके मूल तक पहुंच कर सप्रमाण सयुक्तिक विवेचन करते हैं। ___ जैन दर्शन, आचार, इतिहास योग, आगम आदि विषयों पर जहाँ आपने शोधप्रधान. ग्रन्थों की सर्जना की है, वहाँ प्रवचन, जीवन चरित्र, कथा, उपन्यास, रूपक आदि विविध साहित्य-सुमनों की सुन्दर संयोजना में भी चमत्कृति पैदा की अब तक छोटी बड़ी लगभग 200 पस्तकों से अधिक का लेखन-संपादन कर साहित्य क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। स्वभाव से अतिविनम्र, मधुर और सरल गुणज्ञ और गुणि-अनुरागी सदा हंसमुख श्री देवेन्द्र मुनि जी श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के उपाचार्य पद को सुशोभित करते हैं। . 'सरसा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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