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परिशिष्ट : वैदिक साहित्य की सूक्तियां | ४८७
उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम-ये छह जहाँ (जिस पुरुष में) होते हैं, भाग्य उसी की सहायता करता है । मन
यज्जाग्रतो दूरमुदैति देवं तद् सूप्तस्य तथैवेति । दूरङ्गमंज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।
-यजुर्वेद ३४/१ जो दैवमन जाग्रत अवस्था में दूर चला जाता है और वैसे ही प्रसुप्त अवस्था में भी दूर चला जाता है, दूर होकर भी ज्योतियों का एक प्रकाशक यह मेरा मन शुभ संकल्प से युक्त हो । मित्र
विद्या शौर्य च दाक्ष्यं च बलं धैर्यं च पञ्चमम् । मित्राणि सहजान्याहुवर्तयन्ति हि तैर्बुधाः ।।
-शुक्रनीति ५/१३ (१) विद्या (२) शूरता (३) दक्षता (४) बल और (५) धैर्य-ये मनुष्य के सहज मित्र होते हैं, क्योंकि बुद्धिमान मनुष्य इन्हीं से जीवनवृत्ति चलाते हैं। मृदुता
मृदुना दारुणं हन्ति मृदुना हन्त्यदारुणम् । नासाध्यं मृदुना किंचित् तस्मात् तीव्रतरं मृदुः ।।
-महाभारत, वनपर्व २८/३१ मृदुता से मनुष्य कठोर को नष्ट कर देता है; मृदुता से ही अकठोर को भी विजित कर लेता है, मृदुता के प्रयोग से कुछ भी असाध्य नहीं है इसलिए मृदुता ही सर्वोत्तम नीति है।
वचन
जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम् । ममेदह क्रतावसो ममचित्तमुपयासि ।।
-अथर्ववेद १/३४/२ मेरी जिह्वा के अग्रभाग में माधुर्य हो । भेरी जिह्वा के मूल में मधुरता हो। मेरे कर्म में माधुर्य का निवास हो और हे माधुर्य ! तुम मेरे हृदय तक पहुँचो ।
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