Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 531
________________ परिशिष्ट : वैदिक साहित्य की सूक्तियां | ४८६ आहार की शुद्धि से अन्तःकरण की शुद्धि होती है; अन्तःकरण की शुद्धि होने पर अटल स्मृति का लाभ होता है और स्मृति लाभ से सभी ग्रन्थियां खुल जाती हैं । सत्य सत्यं ब्रूयात्प्रियंब यान्न ब्र यात्सत्यमप्रियम् । प्रियं च नानृतं ब्र यादेष धर्म सनातनः ।। -मनुस्मृति ४/१३८ सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए; किन्तु अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए और न प्रिय असत्य ही बोलना चाहिए यही शाश्वत (सनातन) धर्म है। समानता समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः। समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ।। -ऋग्वेद १०/१६१/४ ___ तुम्हारा संकल्प समान हो, तुम्हारे हृदय समान हों, तुम्हारे मन एक समान हों, जिससे तुम्हारी शक्ति विकसित हो । संगति मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः। पंकच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः ।। -मालविकाग्निमित्र २/७ मन्दबुद्धि वाला व्यक्ति भी बुद्धिमान व्यक्ति के सम्पर्क से चतुर हो जाता है, जैसे निर्मली-फल के सम्पर्क से दूषित जल भी शुद्ध हो जाता है। संग्रह संग्रहो नास्ति कर्तव्यो दुःखभागन्यथा भवेत् । उद्वास्यन्ते द्विरेफा हि लुब्धकैर्मधु संग्रहात् ।। -बुद्धचरित २६/४४ अति संचय नहीं करना चाहिए अन्यथा कष्ट भोगना पड़ता है। मधु का संग्रह करने के कारण मधुमक्खियाँ व्याधों के द्वारा उडा दी जाती हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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