Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 532
________________ ४६० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन हिन्दी साहित्य की सूक्तियां अति अति न करह अतिता बुरी, चाहे होय ललाम । देखहु कीरा परत हैं, अति मीठे जो आम ।। . .-नीति छन्द अभिमान रहिमन गली है सांकरी, दूजौ ना ठहराइ । आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं ।। -रहीम, दोहावली १८२ अवगुण आये औगुन एक के, गुन सब जात नसाय । जथा खार जल रासि को नहिं कोऊ जल खाय ।। ___-दृष्टान्त तरंगिणी, १३४ अहिंसा मानव नियम अहिंसा धर्म निधन । -गोरख वानी, २६ परमधर्म स्रति विदित अहिंसा -तुलसी : रामचरितमानस हिंसा द्वारा न्याय होता है अन्याय युत । -महात्मा भगवानदीन-स्वदेश सतसई, पृ० ४ आशा तुलसी अद्भुत देवता, आसा देवी नाम । सेए सोक समर्पइ, विमुख भए अभिराम । -तुलसी दो० २५८ ईश्वर भक्ति कबीर हरि की भगति बिन ध्रिग जीमण संसार ।। धुवाँ केरा धौलहर जात न लागे बार ॥ -कबीर ग्रन्थ० पृ० २३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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