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समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान | ४३५
कार सोमदेव सूरि और आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी पुस्तक अर्हन नीति में राजा के कर्तव्य और उत्तरदायित्व की विस्तृत विवेचना की है तथा सुराज्य सम्बन्धी नीति-सिद्धान्त निर्धारित किये हैं ।
___ (३) आर्थिक समस्याओं का समाधान-आर्थिक समस्या मानव की चिर कालीन समस्या रही है। भारत ही नहीं, संसार में सर्वत्र और सर्वदा शोषक और शोषित दोनों वर्ग रहे हैं । अधिकार सम्पन्न व्यक्ति, धनी आदि शोषक-वर्ग का प्रतिनिधित्व करते रहे तो सामान्य जनता शोषित बनी रही ।
किन्तु आधुनिक युग में यह समस्या बहुत विकराल हो गई है । इस का प्रमुख कारण यह है कि आधुनिक युग अर्थयुग है। भर्तृहरि का वाक्य 'सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति' आज चरितार्थ हो रहा है। आज के युग में धन की ही प्रतिष्ठा है, धनवान ही सर्वगुण सम्पन्न है, उसी को सर्वत्र मान्यता प्राप्त है, उसी का सम्मान है।
जहां तक उपार्जन (धनोपार्जन) का संबंध है, जैन नीति उस पर अंकुश नहीं लगाती; व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की भौतिक उन्नति में बाधक बनना जैन नीति को इष्ट नहीं है; उसका तो इतना ही मन्तव्य है कि व्यक्ति का वैभव न्याय सम्पन्न हो, उसके उपार्जन के साधन नीतिपूर्ण हों, उनमें अन्याय-अनीति का सहारा न हो; पाप कर्मों से प्राप्त सम्पत्ति जैन-नीति को इष्ट नहीं है।
— इसीलिए श्रावक के लिए कर्मादानों को निषिद्ध बताया गया है; क्योंकि वे अधिक हिंसा के कारण हैं और उनसे असामाजिक वृत्तियों के पनपने की आशंका रहती है, श्रमिक और नियोक्ता में संघर्ष की भूमिका बनती है।
यहाँ तक अर्थात् न्याय-नीतिपूर्ण उपार्जन की सीमा तक आर्थिक समस्या का वातावरण नहीं बनता; आर्थिक समस्या तो तब बनती है और तभी उसकी विभीषिका अनुभव होती है, जब कि धन कुछ हाथों में ही केन्द्रित हो जाय और धनो-निर्धन का भेद अत्यधिक विकट बन जाय, सामान्य जनता तो गरीबी की सीमा रेखा के नीचे ही रह जाय और धनिक जन भोग-विलास-ऐश्वर्य में डूब जायें।
१ सोमदेब सूरि : नीतिवाक्यामत में राजनीति, संपादक एम. एल. शर्मा २ आचार्य हेमचन्द्रः अर्हन नीति, प्रथम एवं द्वितीय अधिकार
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