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समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान | ४४१
मनुष्य की मानसिक, वाचिक और व्यावहारिक सभी प्रकार की वृत्ति-प्रवृत्ति और क्रिया-कलापों का का अध्ययनकर्ता बन गया।
अहिंसा अहिंसा जैनदर्शन, आचार और नीति की रीढ़ है। अहिंसा का प्रत्यय, जो नीति का सर्वमान्य प्रत्यय है, जैनधर्म में विस्तृत रूप से व्याख्यायित है। प्राणी मात्र की रक्षा करना, उनके प्रति मन में भी दुर्भाव न करना, वचन भी ऐसा कोई न बोलना जिससे किसी का मर्म घायल हो। यह आचारिक और नैतिक अहिंसा है ।
अनेकान्त यह वैचारिक अहिंसा है, विरोधी की बात का उचित सम्मान है और विभिन्न परस्पर विरोधी नीतियों के विरोध को उपशमित करने वाला है । लोक व्यवहार को उचित रूप से प्रवर्तित करने वाला है।
दार्शनिक और नैतिक जगत को जननीति द्वारा दिया गया अनेकान्त का सिद्धान्त सर्वोत्तम हैं। यहां तक कि वैज्ञानिक जगत में सापेक्षता सिद्धान्त (Theory of Relativity) के रूप में मान्य हुआ है।
जैन नीति द्वारा प्रतिपादित अनेकान्त और स्याद्वाद नीति के ऐसे प्रत्यय हैं जो सार्वभौम नीति को प्रतिपादित करते हैं और नैतिक वातावरण को ठोस आधार प्रदान करते हैं।
.. कान्ट ने जो कहा-'तुम्हें ऐसे कर्तव्य का आचरण करना चाहिए, जिसे तुरन्त सार्वभौम बना सको।' इस शर्त को अनेकान्त पूरी करता है । अनेकान्त के आचरण को तुरन्त सार्वभौम बनाया जा सकता है और यह बनने योग्य भी है। जैन नीति की इस अनुपम देन का समस्त विद्वद् जगत आभारी है ।
अपरिग्रह अहिंसा का ही प्रत्यय संचय के सम्बन्ध में अपरिग्रह के रूप में उभरता है। परिग्रह स्वयं अपने और दूसरों के लिए भी दुःखकारी है । संचय स्वयं मानव को चिन्तित कर देता है और अन्यों के लिए अभाव की स्थिति खड़ी कर देता है।
दूसरों को अभावजन्य कष्ट और स्वयं को चिन्ता द्वारा मानसिक
१. नीति विरोधध्वंसी, लोकव्यवहार वर्तकः सम्यक् :
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