Book Title: Jain Nitishastra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 522
________________ ४८० | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन विविध चतुर्भगी दानी गज्जित्ता णामं एगे णो वासित्ता । वासित्ताणामं एगे णो गज्जित्ता । एगे गज्जित्ता वि वासित्ता वि । एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता। .. -स्थानांग ४/४ मेघ के समान दानी भी चार प्रकार के होते हैं(१) कुछ बोलते हैं, देते नहीं। (२) कुछ देते हैं पर बोलते नहीं। (३) कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं। (४) कुछ न बोलते हैं और न देते ही हैं। चतुर्भगी-दोष दर्शन अप्पणो णाममेगे वज्ज पासंइ, णो परस्स । परस्स णाममेगे वज्जं पासइ, णो अप्पणो। एगे अप्पणो वि वज्जं पासइ, परस्स वि । एगे णो अप्पणो वज्जं पासइ, णो परस्स । -स्थानांग ४/१ (१) कुछ मनुष्य अपना वर्ण्य (दोष) देखते हैं, दूसरों का नहीं। (२) कुछ मनुष्य दूसरों का वर्ण्य (दोष) देखते हैं, अपना नहीं। (३) कुछ मनुष्य अपना भी दोष देखते हैं और दूसरों का भी। (४) कुछ मनुष्य न अपना दोष देखते हैं, न दूसरों का ही। चतुर्भगी-पुत्र चत्तारि सुत्ताअतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले । -स्थानांग ४१ चार प्रकार के पुत्र होते हैं(१) कुछ गुणों की दृष्टि से अपने पिता से बढ़कर होते हैं । (२) कुछ अपने पिता के समान होते हैं। (३) कुछ अपने पिता से हीन होते हैं । (४) कुछ वंश का नाश करने वाले कुलांगार होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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