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परिशिष्ट : प्राकृत जैन साहित्य को सूक्यिां | ४६१
गुणकारिआइं धणियं, धिइरज्जुनियंतिआई तुह जीव । निययाइं इंदियाइं, वल्लिनिअत्ता तुरंगुव्व ॥
-इन्द्रियपराजय शतक ६४ वश में किया हुआ बलिष्ठ घोड़ा जिस प्रकार बहुत लाभदायक होता है, उसी प्रकार धर्मरूपी लगाम द्वारा वश में की हुई स्वयं अपनी इन्द्रियाँ तुझे बहुत लाभदायक होंगी । अतः इन्द्रियों को वश में करके उनका निग्रह करना चाहिए। उद्बोधन
जं कल्लं कायव्वं, णरेण अज्जेव तं वरं काई। मच्चू अकलुणहिअओ, न दीसइ आवयंतो वि ।।
-बृहत्कल्पभाष्य ४६७४ जो कर्तव्य कल करना है, उसे आज ही कर लेना श्रेयस्कर है । मृत्यु अत्यन्त निर्दय है, पता नहीं वह कब आ जाए ।
मा पच्छ असाधुताभवे अच्चे. ही अणुसास अप्पगं।
- सूत्रकृतांग १/२/३/७ भविष्य में तुम्हें कष्ट न भोगना पड़े, इसलिए अभी से अपने को अनुशासित करो।
सुवइ य अजगरभूतो, सुयंपि ये णासती अमयभूयं । होहिति गोणभूयो णळंमि सुये अमयभूये ॥
-निशीथभाष्य ५३०५ जो मानव अजगर के समान सोया रहता है, उसका अमृतस्वरूप ज्ञान क्षीण हो जाता है और अमृतस्वरूप ज्ञान के क्षीण होने पर व्यक्ति एक प्रकार से निरा बैल बन जाता है।
अवसोहिय कण्टगापहं, ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गविसोहिया । समयं गोयम ! मा पमायए !
-उत्तराध्ययन १०/३२ काँटों से भरे संकीर्ण मार्ग को छोड़कर तू विशाल सत्पथ पर चला आया है । अब दृढ़ निश्चय के साथ इसी मार्ग पर चल । जीवन में क्षण मात्र भी प्रमाद मत कर!
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