________________
समस्याओं के समाधान में जैन नीति का योगदान | ४३१
इससे त्राण पाने के लिए उसने राजा बनाया, राज संस्था का निर्माण किया और अपने सारे अधिकार राजा को सौंप दिये । लेकिन कुछ समय बाद ही राजा ने कर-भार से मानव को त्रस्त कर दिया। उसके श्रम का छठा भाग कर के रूप में वसूल करने लगा।
___ मानव ने एकतंत्र को कुलीन-तंत्र में परिवर्तित करके सोचा कुछ शान्त मिलेगी; किन्तु कुलीन-तंत्र ने सदाचारी और विद्वानों को जहर का प्याला ही पिला दिया।
मानव और भो दुखी हो उठा । उसने प्रजातन्त्र की स्थापना की; किन्तु यह तो गुण्डों का खेल ही प्रमाणित होने लगा। मानव के दुःख की सीमा न रही । जन-नेता ही परस्पर वाकयुद्ध और गाली-गलौज करने लगे। परछिद्रान्वेषण और परदोषारोपण सामान्य हो गया। चरित्र-पतित हो गया। आर्थिक दृष्टि से भी मानव का पतन हो गया।
अर्थ सम्बन्धी समस्या के समाधान के लिए मानव ने पूंजीवाद के विरुद्ध समाजवाद और साम्यवाद की स्थापना की। लेकिन साम्यवाद ने मानव अजित अधिक सम्पत्ति का स्वामी राज्य को ही बना दिया। Surplus का स्वामी राज्य बन गया और मानव की स्वतन्त्रता-सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, सभी प्रकार की स्वतन्त्रता छिन गयी । वह व्यवस्था का एक पूजाँ मात्र बनकर रह गया।
समस्या का चक्र घूमता हआ हजारों वर्ष पहले के युग में पहुँच गया जिस राज्य के चंगुल से मानव छटना चाहता था, घूम-फिर कर उसी फन्दे में जकड़ गया।
यही सब देखकर वाल्टेयर ने कहा-मानव-शिशु स्वत त्र जन्म लेता है किन्तु जीवन भर विभिन्न प्रकार के बंधनों में जकड़ा रहता है और उन्हीं बंधनों में उसका अन्त हो जाता है।
इन सब समस्याओं के समाधान के लिए मानव ने धर्म-संस्था की स्थापना की और उसकी शरण में शान्ति की, न्याय की, बलवती आशा की डोर बाँधी।
१. वैदिक पुराण महाभारत के अनुसार जनता ने मनु को राजा चुना था और
अपने सारे अधिकार उन्हें सौंप दिये थे। २. यूनान के प्रबुद्ध चिन्तक प्लेटो को कुलीन तन्त्र ने विष का प्याला पिलाया था। 3. Democracy is the game of scound:els.
Bertrand Russell
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org