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४१२ / जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन सब स्वैच्छिक है, इन नैतिकताओं का पालन वह अपनी आन्तरिक इच्छा से करता है, किसी अन्य बाहरी दवाब से नहीं । और उसकी नैतिक प्रतिबद्धता को ही बाध्यता (obligation) कहा जा सकता है, यदि कहना ही चाहें।
कुछ विद्वानों ने कर्तव्यों को तीन वर्गों में विभाजित किया है
१. स्वयं अपने प्रति कर्तव्य-इसमें अपनी आत्मा और शरीर के प्रति सभी प्रकार के कर्तव्य निहित हैं । यथा-भौतिक, बौद्धिक, आर्थिक, नैतिक और कलात्मकता के कर्त्तव्य ।
जैसे-हमें आत्महत्या का अधिकार नहीं, अपितु अपने जीवन का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है । इसी प्रकार आर्थिक समृद्धि और बौद्धिक उन्नति भी हमारा कर्तव्य है । साथ ही नैतिक जीवन व्यतीत करना भी हमरा प्रमुख कर्तव्य है।
बौद्धिक विकास के लिए ज्ञानार्जन करना, वृद्ध और और अनुभवियों की शिक्षा मानना भी हमारे नैतिक कर्तव्य हैं ।
__ कलात्मकता का अभिप्राय नीति के सन्दर्भ में सुरुचि संपन्नता है । यह सुरुचि वस्त्र धारण करने, बोल-चाल के ढंग, भाषा वाणी आदि के रूप में प्रदर्शित होती है । साथ ही नागरिक का कर्तव्य है कि पार्क उद्यान, आदि सार्वजनिक स्थल तथा ऐतिहासिक स्थानों की स्वच्छता तथा गरिमा नष्ट भ्रष्ट या विकृत न करे।
२. दूसरों के प्रति कर्तव्य--अपनी आत्मा और शरीर के अतिरिक्त अन्य सभी दूसरे हैं । इनसे सामंजस्य स्थापित करना हमारा कर्तव्य है।
इन दूसरों में परिवार, देश, समाज, मानव जाति और यहाँ तक कि पेड़ पौधे आदि भी सम्मिलित हैं।
परिवार में माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन आदि बहुत से सदस्य होते हैं । उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाना, जैसे-बड़ों के प्रति सम्मान
और छोटों के प्रति प्रेम, सेवा, सहयोग आदि । इसी प्रकार समाज के अन्य व्यक्तियों के प्रति भी ईमानदारी, प्रामाणिकता, सहयोग आदि व्यक्ति का कर्तव्य है । राष्ट्र आदि के प्रति भी व्यक्ति के विभिन्न प्रकार के कर्तव्य हैं। __जहाँ तक पेड़-पौधों का प्रश्न है तो उनकी रक्षा करना, उन्हें व्यर्थ ही नष्ट न करना व्यक्ति का प्रमुख कर्तव्य है । इसका कारण यह है कि वृक्ष मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं । ये मानव को फल-फूल देते हैं, वातावरण
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