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२८८ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन चाहिए; क्योंकि इनसे भी चित्त चचल होता है । संभवतः इसीलिए महात्मा गांधी ने ब्रह्मचर्य (अणुव्रत) की साधना के लिए रसना इन्द्रिय का संयम आवश्यक बताया है।
ब्रह्मचर्य अणुव्रत के पाँच अतिचार यह हैं
(१) इत्वरिक परिगृहीतागमन- इत्वर का अभिप्राय है -अल्पकाल और इत्वरिक उस स्त्री को कहते हैं, जो कुछ काल के लिए पत्नी बनाकर रखी गई हो । ऐसी स्त्री रखैल (Kept) कहलाती है । धन आदि का प्रलोभन देकर इस प्रकार की शिथिल चरित्रवाली स्त्रियों (Easy character girls अथवा Society girls) को रखा जा सकता है। यह अवधि कुछ भी हो सकती है।
_इसका दूसरा अभिप्राय यह भी है कि अपनी अल्प वयस्का पत्नी (जिसकी आयु भोग के योग्य न हो, बाल्यावस्था अथवा किशोरावस्था ही हो) के साथ गमन करना । यह कथन बाल-विवाह की अपेक्षा से है।
तीसरा अभिप्राय यह है कि स्वयं अपनी ही पत्नी किसी कारण से भोग योग्य न हो, उसके साथ भी गमन (भोग) करना। भोग की अयोग्यता के अनेक शारीरिक कारण हो सकते हैं।
नीति की अपेक्षा इस अतिचार के तीनों रूप महत्वपूर्ण हैं । नीतिकी ओर पहला कदम रखते ही सदाचारी गृहस्थ रखैल आदि का तो त्याग कर ही देता है। तब वह ऐसी स्त्री से सम्बन्ध कसे स्थापित कर सकता है जो शिथिल चरित्र वाली हो ?
बाल-विवाह किसी युग में होते थे लेकिन उस युग में भी वे नैतिक दृष्टि से उचित नहीं माने जाते थे और आज के युग में इन्हें अनैतिक कहा ही जाता है । फिर यह कानूनी अपराध भी है, क्योंकि १६ वर्ष से कम उम्र की लड़की का विवाह कानून द्वारा वर्जित है। ऐसा दण्डनीय अपराध नीति वान गृहस्थ कैसे कर सकता है ?
तीसरा रूप पत्नी भोग योग्य न हो फिर भी उसके साथ भोग करना स्वयं अपने लिए बीमारियों को निमन्त्रण देना है और जीवन-साथी के जीवन के साथ खिलवाड़ करना है। यह तो बलात्कार की परिधि में गिना जाना चाहिए, जो अनैतिक आचरण है।
आज के युग में जो अनेक यौन-रोग फैल रहे हैं, उन सब का मूल कारण मानव की बढ़ती हुई घोर ऐन्द्रियपरकता और काम-सुख की अदम्य लालसा है।
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