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१९६ | जैन नीतिशास्त्र : एक परिशीलन
नव तत्त्व
व्यवहार सम्यग्दर्शन का दूसरा लक्षण नव तत्वों की यथार्थ श्रद्धा किया गया है । अतः यह जान लेना आवश्यक है कि जैन धर्मानुमोदित नौ तत्व कौन से हैं, जिन पर श्रद्धा करने से जीव को सम्यग्दर्शन की उपलब्धि होती है।
नौ तत्वों के नाम हैं-१ जीव २ अजीव ३ बंध ४ पुण्य ५ पाप ६ आस्रव ७ संवर ८ निर्जरा और ६ मोक्ष' ।
तत्वार्थ सूत्र 2 में ७ तत्व ही माने हैं, पुण्य-पाप की गणना तत्वों में नहीं की है तथा वहाँ क्रम भी भिन्न है-१ जीव २ अजीव ३ आस्रव ४ बंध ५ संवर ६ निर्जरा और ७ मोक्ष । किन्तु ७ और ६ की गणना अपेक्षाभेद मात्र है, इससे स्वरूप चिन्तन में कोई अन्तर नहीं आता। यद्यपि तत्वार्थ सूत्रकार ने भी आस्रव के दो भेद पुण्य और पाप माने हैं । लेकिन सिर्फ आस्रव के भेद पुण्य-पाप मान लेने से काम नहीं चलता क्योंकि पुण्य
और पाप का बंध भी होता है तथा इनका फल भी जीव को भोगना पड़ता है।
फिर नीतिशास्त्र की दृष्टि से तथा आचार की अपेक्षा भी पूण्य-पाप का महत्व अधिक है तथा इनका विशिष्ट स्थान है। क्योंकि पुण्य नीतिशास्त्रीय दृष्टिकोण से शुभ-नैतिक शुभ है और पाप है नैतिक अशुभ । अतः नौ तत्वों की गणना हो अधिक उचित है। (१) जीव तत्व
जीव का लक्षण-जीव शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार जीव का लक्षण बताया गया है-जो जीवित रहता है, प्राण धारण करता है, वह जीव है।'
१ जीवाजीना य बन्धो य पुण्णं पावासवो तहा ।
संवरो निज्जरा मोक्खो सन्ते ए तहिया नव ।। ~-उत्तरा० २८/१४ २ जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षारतत्वम् ।
-तत्वार्थ सूत्र १/४ ३ कायवाङ सुनः कर्मयोगः ।१। स आस्रवः ।२। शुभः पुण्यस्य।३। अशुभः पापस्य।४।
-तत्वार्थसूत्र ६/१-४ ४ जीवति प्राणान् धारयतीति जीवः । -आचार्य श्री आत्माराम जी-जैन तत्व
कलिका, पंचम कलिका, पृष्ठ ८१, टिप्पण
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