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नैतिक मान्यताएं। १५१
इस गाथा में आत्मा की अमरता, कर्मों द्वारा आत्मा का बन्धन, ईश्वर सत्ता, आत्मा की कर्म बन्धनों से स्वतन्त्र होने की शक्ति, तथा आत्म स्वातंत्र्य--यह सब अभ्युपगम अथवा पूर्व मान्यताएँ हैं। क्योंकि यदि आत्मा आदि की पूर्व धारणाएँ ही न हों तो इस कथन की संगति ही नहीं बैठ सकती।
इन पूर्व मान्यताओं की कुछ विशेषताएँ हैं(१) यह जीवन-व्यवहार को प्रभावित करती हैं । (२) इनमें मानव को निष्ठा अनिवार्य होती है । (३) यह परम्परासिद्ध होती हैं और प्रवर्तमान रहती हैं।
(४) बुद्धि द्वारा इनका खण्डन किया जा सकता है, किन्तु व्यवहार में इनका खण्डन सम्भव नहीं है । जैसे-नास्तिकवादी चार्वाक दर्शन ने बुद्धि और तर्क द्वारा आत्मा के अस्तित्व का खण्डन कर दिया, किन्तु व्यवहार में आत्मा का खण्डन न कर सका, आत्मा के बारे में जन-जीवन की निष्ठा को न हिला सका।
(५) यह बुद्धिवादी विवेचनायें नहीं हैं, अपितु नैतिकता का आधार हैं, व्यावहारिक जीवन के लिए आवश्यक हैं।
. (६) लोग इनकी उपलब्धि के लिए प्रयत्नशील होते हैं क्योंकि पूर्वमान्यताओं की सत्यता लोगों के मनोरथ और मनोकामनाएँ होने से बढ़ती हैं। जैसे-मुक्ति की सत्यता लोगों के इस और प्रयत्नशील होने से मानव हृदय में दृढ़ होती है।
(७) इनका अस्तित्व समाज की सुव्यवस्था और व्यक्ति की नैतिक उन्नति के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह चेतनाशील और विचारपूर्ण होती है।
(८) यह सत्कर्म और नैतिक व्यवहार का आधार होती है तथा इन (सत्कर्मों और नैतिक व्यवहार) के फल में कार्य-कारण भाव होता है; यथा-अच्छे कर्मों का फल शुभ होता है।
___(5) यह अमूर्त मान्यताओं (जैसे आत्मा की, मोक्ष की मान्यता आदि) को वस्तुगत वास्तविकता-यथार्थता प्रदान करती हैं। इस कारण ये मानवों द्वारा दृढ़ता से धारण की जाती हैं।
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