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बहुतसे ग्रंथ लिखे; जैसे काव्यानुशासन-वृत्ति, छंदानुशासनवृत्ति, अभिधानचिंतामणि अर्थात् नाममाला, अनेकार्थ-संग्रह, द्वाश्रयमहाकाव्य, त्रिषष्ठिशलाकापुरुष-चरित, योगशास्त्र, निघंटुशेष, इत्यादि ।
१०४. उन्होंने न्यायका प्रमाण-मीमांसा नामक एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है और उसपर उन्होंने स्वयं ही टीका लिखी है ।
१०५. उन्होंने सन् १०८८ ई० में जन्म लिया, सन् १०९३ ई० में दीक्षा ग्रहण की, सन् ११०९ ई० में सूरिकी पदवी प्राप्त की और सन् ११७२ में स्वर्गवास किया।
चन्द्रप्रभ मूरि ( ई० सन् ११०२) १०६. चन्द्रप्रभसूरिने गुजरातमें जन्म लिया, और ई० सन् ११०२ में पूर्णिमा गच्छ स्थापित किया। वे जयसिंह सूरिके शिष्य और धर्मघोषके गुरु थे। वे दर्शनशुद्धि और संभवतः न्यायके दो ग्रंथ प्रमेयरत्नकोश और न्यायावतारविवृत्तिके कर्ता थे।
१०७. न्यायावतार-विवृत्ति सिद्धसेनदिवाकरकृत न्यायावतार पर उत्तम टीका है । उसमें धर्मोत्तर इत्यादि बौद्ध नैयायिकोंका जिक्र आया है। ..
नेमिचंद्र कवि (ई० सन् ११५० के लगभग ) १०८. नेमिचंदका जन्म गुजरातमें हुआ। सागरेन्दु मुनिके शिष्य. माणिक्यचन्द्रने अपने पार्श्वनाथचरितमें, जो ई० सन् १२१९ में लिखा गया था, नेमिचन्द्रको वैरस्वामीका शिष्य और सागरेन्दु (सागरचन्द) का गुरु लिखा है। क्योंकि माणिक्यचन्द्र लगभग सन् १२१९ में विद्यमान थे, अतएव उनके गुरु सन् ११५० ई० के लगभग हुए होंगे।
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