Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 119
________________ इसलिए उसने इस इच्छासे बत्तीसों गोलियाँ एक साथ खाली कि इनसे ३२ लक्षणयुक्त एक ही पुत्र उत्पन्न हो । परन्तु उसके एक ही साथ ३२ पुत्र उत्पन्न हो गये ! जब श्रोणिक चिल्लणा या चेलनीके हरण करनेके लिया गया था, तब ये सब पुत्र युद्धमें मारे गये। इससे सुलसा और नाग बड़े ही दुखी हुए। धर्मोपदेशसे उन्हें शान्ति मिली। इसके बाद एक मायावीने सुलसाकी धर्मश्रद्धाकी परीक्षा ली । वह उसमें अच्छी तरह उत्तीर्ण हुई। अन्तमें 'पण्डितमरण' करके सुलसाने शरीर त्याग किया । श्वेताम्बर ग्रन्थोंके आधारसे उक्त कथाको लेकर इस उपन्यासकी रचना की गई है। श्वेताम्बर सम्प्रदायकी बहुत ही कम पुस्तकें अच्छी हिन्दीमें लिखी जाती हैं, परन्तु इसकी हिन्दी प्रायः शुद्ध है। इसमें संदेह नहीं कि इससे धर्मोपदेश अच्छा मिलेगा; . परन्तु इसे हम उपन्यास नहीं कह सकते; यह सिर्फ प्राचीन कथाका वर्तमान ढंगमें ढाला हुआ रूपान्तर है। सुलसाके साथ जो 'शाणी' विशेषण लगा हुआ है, उसका अर्थ पूरी पुस्तक पढ़ जाने पर भी हमारी समझमें न आया। पुस्तककी छपाई और काग़ज अच्छा है। ७२ पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य दो आना बहुत ही कम है। .. २७ पं० मुन्नीलालजीकी पुस्तकें । पं० जी पहले सिवनी (म० प्र०) की जैनपाठशालामें अध्यापक थे; परन्तु अब अध्यापकी छोड़कर वर्धाके जैन बोर्डिंग हाउसके सुपरिंटेंडेंट हो गये हैं। आपने एक 'जैनधर्मप्रचारक' नामका पुस्तकालय भी खोल रक्खा है। उसंकी ओरसे आप जैनधर्मकी पुस्तकें छपाया करते हैं और इधर उधरकी पुस्तकें भी बेचा करते हैं। आपने हमारे पास १ जिनेद्रदर्शन पाठ, २ समवशरणदर्पण और ३ वैश्य कौमकी हालतका फोटू ये तीन पुस्तकें समालोचनार्थ भेजनेकी कृपा की है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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